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29 मई, 2012

"गर्म जलेबी हमें खिलाओ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


पापा मेले में ले जाओ।
गर्म जलेबी हमें खिलाओ।।
गोल-गोल हैं प्यारी-प्यारी।
शानदार हैं सबसे न्यारी।।
नारंगी रंगों वाली हैं।
लगती कानों की बाली हैं।।
कितनी अच्छी, कितनी सुन्दर?
मीठा रस है इनके अन्दर।।
मेले में थोडी ही खाना।
बाकी अपने घर ले जाना।।
गर्म दूध में इन्हें डुबाना।
ठण्डी हो जाने पर खाना।।