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26 फ़रवरी, 2014

"पेंसिल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
बालकविता
"पेंसिल"
रंग-बिरंगी पेंसिलें तो, 
हमको खूब लुभाती हैं। 
ये ही हमसे ए.बी.सी.डी., 
क.ख.ग. लिखवाती हैं।। 

रेखा-चित्र बनाना, 
इनके बिना असम्भव होता है।
कला बनाना भी तो, 
केवल इनसे सम्भव होता है।। 

गल्ती हो जाये तो,
लेकर रबड़ तुरन्त मिटा डालो।
गुणा-भाग करना चाहो तो,
बस्ते में से इसे निकालो।। 

छोटी हो या बड़ी क्लास,
ये काम सभी में आती है। 
इसे छीलते रहो कटर से, 
यह चलती ही जाती है।।

तख्ती,कलम,स्लेट का, 
तो इसने कर दिया सफाया है।
बदल गया है समय पुराना,
नया जमाना आया है।। 

22 फ़रवरी, 2014

“बिन वेतन का चौकीदार” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
बालकविता

“बिन वेतन का चौकीदार”

टॉम हमारा कितना अच्छा! 
लगता है यह सीधा सच्चा!!
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 ठण्डे जल से रोज नहाता! 
फिर मुझसे कंघी करवाता!!  
IMG_1118  बड़े-बड़े हैं इसके बाल! 
एक आँख है इसकी लाल!! 
IMG_1116घर भर को है इससे प्यार! 
प्राची करती इसे दुलार!! 
बिन वेतन का चौकीदार! 
सच्चा है यह पहरेदार!!

18 फ़रवरी, 2014

"हमारा सूरज" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
बालगीत
"हमारा सूरज"

पूरब से जो उगता है और पश्चिम में छिप जाता है। 
यह प्रकाश का पुंज हमारा सूरज कहलाता है।।

रुकता नही कभी भी चलता रहता सदा नियम से, 
दुनिया को नियमित होने का पाठ पढ़ा जाता है। 
यह प्रकाश का पुंज हमारा सूरज कहलाता है।।

नही किसी से भेद-भाव और वैर कभी रखता है, 
सदा हितैषी रहने की शिक्षा हमको दे जाता है।
यह प्रकाश का पुंज हमारा सूरज कहलाता है।। 

सूर्य उदय होने पर जीवों में जीवन आता है, 
भानु रात और दिन का हमको भेद बताता है। 
यह प्रकाश का पुंज हमारा सूरज कहलाता है।। 

दूर क्षितिज में रहकर तुम सबको जीवन देते हो, 
भुवन-भास्कर तुमको सब जग शीश नवाता है। 
यह प्रकाश का पुंज हमारा सूरज कहलाता है।।

14 फ़रवरी, 2014

"पढ़ना-लिखना मजबूरी है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
बालकविता
"पढ़ना-लिखना मजबूरी है"
 
 मुश्किल हैं विज्ञान, गणित,
हिन्दी ने बहुत सताया है।
अंग्रेजी की देख जटिलता,
मेरा मन घबराया है।।

भूगोल और इतिहास मुझे,
बिल्कुल भी नही सुहाते हैं।
श्लोकों के कठिन अर्थ,
मुझको करने नही आते हैं।।

देखी नही किताब उठाकर,
खेल-कूद में समय गँवाया,
अब सिर पर आ गई परीक्षा,
माथा मेरा चकराया।।

बिना पढ़े ही मुझको,
सारे प्रश्नपत्र हल करने हैं।
किस्से और कहानी से ही,
कागज-कॉपी भरने हैं।।

नाहक अपना समय गँवाया,
मैं यह खूब मानता हूँ।
स्वाद शून्य का चखना होगा,
मैं यह खूब जानता हूँ।।

तन्दरुस्ती के लिए खेलना,
सबको बहुत जरूरी है।
किन्तु परीक्षा की खातिर,
पढ़ना-लिखना मजबूरी है।।

10 फ़रवरी, 2014

"उल्लू" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
"उल्लू" 
उल्लू का रंग-रूप निराला।
लगता कितना भोला-भाला।।

अन्धकार इसके मन भाता।
सूरज इसको नही सुहाता।।

यह लक्ष्मी जी का वाहक है।
धन-दौलत का संग्राहक है।।

इसकी पूजा जो है करता।
ये उसकी मति को है हरता।।

धन का रोग लगा देता यह।
सुख की नींद भगा देता यह।।

सबको इसके बोल अखरते।
बड़े-बड़े इससे हैं डरते।।

विद्या का वैरी कहलाता।
ये बुद्धू का है जामाता।।

पढ़-लिख कर ज्ञानी बन जाना।
कभी न उल्लू तुम कहलाना।।

04 फ़रवरी, 2014

""बगुला भगत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
"बगुला भगत" 
बगुला भगत बना है कैसा?
लगता एक तपस्वी जैसा।।

अपनी धुन में अड़ा हुआ है।
एक टाँग पर खड़ा हुआ है।।

धवल दूध सा उजला तन है।
जिसमें बसता काला मन है।।

मीनों के कुल का घाती है।
नेता जी का यह नाती है।।

बैठा यह तालाब किनारे।
छिपी मछलियाँ डर के मारे।।

पंख कभी यह नोच रहा है।
आँख मूँद कर सोच रहा है।।

मछली अगर नजर आ जाये।
मार झपट्टा यह खा जाये।।

इसे देख धोखा मत खाना।
यह ढोंगी है जाना-माना।।