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31 जुलाई, 2010

"गैस सिलेण्डर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


गैस सिलेण्डर कितना प्यारा।
मम्मी की आँखों का तारा।।
रेगूलेटर अच्छा लाना।
सही ढंग से इसे लगाना।।

गैस सिलेण्डर है वरदान।
यह रसोई-घर की है शान।।

दूघ पकाओ, चाय बनाओ।
मनचाहे पकवान बनाओ।।

बिजली अगर नही है घर में।
यह प्रकाश देता पल भर में।।

बाथरूम में इसे लगाओ।
गर्म-गर्म पानी से न्हाओ।।

बीत गया है वक्त पुराना।
अब आया है नया जमाना।।

कण्डे, लकड़ी अब नही लाना।
बड़ा सहज है गैस जलाना।।

किन्तु सुरक्षा को अपनाना।
इसे कार में नही लगाना।
(चित्र गूगल सर्च से साभार)

21 जुलाई, 2010

“मेरा झूला” (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

मेरा झूला बडा़ निराला!

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मम्मी जी ने इसको डाला।
मेरा झूला बडा़ निराला।।


खुश हो जाती हूँ मैं कितनी,
जब झूला पा जाती हूँ।
होम-वर्क पूरा करते ही,
मैं इस पर आ जाती हूँ।
करता है मन को मतवाला।
मेरा झूला बडा़ निराला।।


मुझको हँसता देख,
सभी खुश हो जाते हैं।
बाबा-दादी, प्यारे-प्यारे,
नये खिलौने लाते हैं।
आओ झूलो, मुन्नी-माला।
मेरा झूला बडा़ निराला।।

19 जुलाई, 2010

"मेरा टेलीफोन : स्वर-अर्चना चावजी का"

“सुनिए-मेरा टेलीफोन"
"स्वर - अर्चना चावजी का” 
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होता कभी नही है मौन!
यह है मेरा टेलीफोन!!

इसमें जब घण्टी आती है,
लाल रौशनी जल जाती है,

हाथों में तब इसे उठाकर,
बड़े मजे से कान लगा कर,

मीठी भाषा में कहती हूँ,
हैल्लो बोल रहे हैं कौन!
यह है मेरा टेलीफोन!!

कभी-कभी दादी-दादा से,
और कभी नानी-नाना से,

थोड़ी नही ढेर सारी सी,
करते बातें हम प्यारी सी,

लेकिन तभी हमारी मम्मी,
देतीं काट हमारा फोन!
यह है मेरा टेलीफोन!!
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

17 जुलाई, 2010

‘‘... .. .वर्षा आई’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई।

शीतल पवन चली सुखदायी।
रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई।

भीग रहे हैं पेड़ों के तन,
भीग रहे हैं आँगन उपवन,
हरियाली सबके मन भाई।
रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई।।

मेंढक टर्र-टर्र चिल्लाते,
झींगुर मस्ती में हैं गाते,
आमों की बहार ले आई।
रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई।।

आसमान में बिजली कड़की,
डर से सहमें लडका-लड़की,
बन्दर जी की शामत आई।
रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई।।
 
कहीं छाँव है, कहीं धूप है,
इन्द्रधनुष कितना अनूप है,
धरती ने है प्यास बुझाई।
रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई।।
 
विद्यालय भी तो जाना है,
होम-वर्क भी जँचवाना है,
प्राची छाता लेकर आयी।
रिम-झिम, रिम-झिम वर्षा आई।।

15 जुलाई, 2010

“नाच रहा जंगल में मोर” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

देख-देख मन हुआ विभोर।
नाच रहा जंगल में मोर।।
चंचल-चपला चमक रही है,
बादल गरज रहा घनघोर।
नाच रहा जंगल में मोर।।
रूप सलोना देख मोरनी,
के मन में है हर्ष-हिलोर।
नाच रहा जंगल में मोर।।


नीलकण्ठ का नृत्य हो रहा,
पुरवा मचा रही है शोर।
नाच रहा जंगल में मोर।।
रंग-बिरंगा और मनभावन,
कितना अच्छा लगता मोर।
नाच रहा जंगल में मोर।।


इस गीत को स्वर दिया है! अर्चना चावजी ने!

13 जुलाई, 2010

“स्लेट और तख़्ती” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

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सिसक-सिसक कर स्लेट जी रही,
तख्ती ने दम तोड़ दिया है।
सुन्दर लेख-सुलेख नहीं है,
कलम टाट का छोड़ दिया है।।

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दादी कहती एक कहानी,
बीत गई सभ्यता पुरानी,
लकड़ी की पाटी होती थी,
बची न उसकी कोई निशानी।। 

फाउण्टेन-पेन गायब हैं,
जेल पेन फल-फूल रहे हैं।
रीत पुरानी भूल रहे हैं,
नवयुग में सब झूल रहे हैं।। 

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 समीकरण सब बदल गये हैं,
शिक्षा का पिट गया दिवाला।
बिगड़ गये परिवेश ज्ञान के,
बिखर गई है मंजुल माला।।

08 जुलाई, 2010

“यह है मेरा टेलीफोन” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”

“टेलीफोन”
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होता कभी नही है मौन!
यह है मेरा टेलीफोन!!


इसमें जब घण्टी आती है,
लाल रौशनी जल जाती है,


हाथों में तब इसे उठाकर,
बड़े मजे से कान लगा कर,


मीठी भाषा में कहती हूँ,
हैल्लो बोल रहे हैं कौन!
यह है मेरा टेलीफोन!!


कभी-कभी दादी-दादा से,
और कभी नानी-नाना से,


थोड़ी नही ढेर सारी सी,
करते बातें हम प्यारी सी,


लेकिन तभी हमारी मम्मी,
देतीं काट हमारा फोन!
यह है मेरा टेलीफोन!!

03 जुलाई, 2010

‘‘… ..बादल बरस रहे हैं?’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

गरज रहे हैं, लरज रहे हैं,
काले बादल बरस रहे हैं।

 कल तक तो सूखा-सूखा था,
धरती का तन-मन रूखा था,
आज झमा-झम बरस रहे हैं।
काले बादल बरस रहे हैं।।

IMG_1631भीग रहे हैं आँगन-उपवन,
तृप्त हो रहे खेत, बाग, वन,
उमड़-घुमड़ घन बरस रहे हैं।
काले बादल बरस रहे हैं।।
मुन्ना भीगा, मुन्नी भीगी,
गोरी की है चुन्नी भीगी,
जोर-शोर से बरस रहे हैं।
काले बादल बरस रहे हैं।।

श्याम घटाएँ घिर-घिर आयी, 
रिम-झिम की बजती शहनाई,
जी भर कर अब बरस रहे हैं।
काले बादल बरस रहे हैं।।

01 जुलाई, 2010

“स्वरावली पढ़िए और सुनिए” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

"अ"
‘‘अ‘’ से अल्पज्ञ सब, ओम् सर्वज्ञ है।
ओम् का जाप, सबसे बड़ा यज्ञ है।।
‘‘आ’’
‘‘आ’’ से आदि न जिसका, कोई अन्त है।
सारी दुनिया का आराध्य, वह सन्त है।।
‘‘इ’’
‘‘इ’’ से इमली खटाई भरी, खान है।
खट्टा होना खतरनाक, पहचान है।।
‘‘ई’’
‘‘ई’’ से ईश्वर का जिसको, सदा ध्यान है।
सबसे अच्छा वही, नेक इन्सान है।।
‘‘उ’’
उल्लू बन कर निशाचर, कहाना नही।
अपना उपनाम भी यह धराना नही।।
‘‘ऊ’’
ऊँट का ऊँट बन, पग बढ़ाना नही।
ऊँट को पर्वतों पर, चढ़ाना नही।।
‘‘ऋ’’
‘‘ऋ’’ से हैं वह ऋषि, जो सुधारे जगत।
अन्यथा जान लो, उसको ढोंगी भगत।।
‘‘ए’’
‘‘ए’’ से है एकता में, भला देश का।
एकता मन्त्र है, शान्त परिवेश का।।
‘‘ऐ’’
‘‘ऐ’’ से तुम ऐठना मत, किसी से कभी।
हिन्द के वासियों, मिल के रहना सभी।।
‘‘ओ’’
‘‘ओ’’ से बुझती नही, प्यास है ओस से।
सारे धन शून्य है, एक सन्तोष से।।
‘‘औ’’
‘‘औ’’ से औरों को पथ, उन्नति का दिखा।
हो सके तो मनुजता, जगत को सिखा।।
‘‘अं’’
‘‘अं’’ से अन्याय सहना, महा पाप है।
राम का नाम सबसे, बड़ा जाप है।।
‘‘अः’’
‘‘अः’’ के आगे का स्वर,अब बचा ही नही।
इसलिए, आगे कुछ भी रचा ही नही।।

अब इस स्वरावली को सुनिए-
अर्चना चावजी के स्वर में-