मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
एक बालकविता
"बहुत काम का"
यह कुत्ता है बड़ा शिकारी।
बिल्ली का दुश्मन है भारी।।
बन्दर अगर इसे दिख जाता।
भौंक-भौंक कर उसे भगाता।।
उछल-उछल कर दौड़ लगाता।
बॉल पकड़ कर जल्दी लाता।।
यह सीधा-सच्चा लगता है।
बच्चों को अच्छा लगता है।।
धवल दूध सा तन है सारा।
इसका नाम फिरंगी प्यारा।।
आँखें इसकी चमकीली हैं।
भूरी सी हैं और नीली हैं।।
जग जाता है यह आहट से।
साथ-साथ चल पड़ता झट से।।
प्यारा सा पिल्ला ले आना।
सुवह शाम इसको टहलाना।।
नौकर है यह बिना दाम का।
वफादार है बड़े काम का।।
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"मेरी गइया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
एक बालकविता
"मेरी गइया"
मेरी गइया बहुत निराली।
सीधी-सादी, भोली-भाली।
सुबह हुई गइया रम्भाई,
मेरा दूध निकालो भाई।
हरी घास खाने को लाना,
उसमें भूसा नहीं मिलाना।
इसका बछड़ा बहुत सलोना,
प्यारा-सा वह एक खिलौना।
मैं जब गइया दुहने जाता,
वह "अम्माँ" कहकर चिल्लाता।
सारा दूध नहीं दुह लेना,
मुझको भी कुछ पीने देना।
थोड़ा ही ले जाना भइया,
सीधी-सादी मेरी मइया।
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15 अगस्त, 2013
"चले देखने मेला" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
एक बालकविता"चले देखने मेला"
हाथी दादा सूँड उठाकर
चले देखने मेला!
बंदर मामा साथ हो लिया
बनकर उनका चेला!
चाट-पकौड़ी ख़ूब उड़ाई
देख चाट का ठेला!
बहुत मज़े से फिर दोनों ने
जमकर खाया केला!
फिर आपस में दोनों बोले,
अच्छा लगा बहुत मेला!
जंगल में सबको बतलाया,
देखा हमने मेला!
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11 अगस्त, 2013
"मेरा बस्ता कितना भारी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
एक बालकविता
"मेरा बस्ता कितना भारी"
मेरा बस्ता कितना भारी।
बोझ उठाना है लाचारी।।
मेरा तो नन्हा सा मन है।
छोटी बुद्धि दुर्बल तन है।।
पढ़नी पड़ती सारी पुस्तक।
थक जाता है मेरा मस्तक।।
रोज-रोज विद्यालय जाना।
बड़ा कठिन है भार उठाना।।
कम्प्यूटर का युग अब आया।
इसमें सारा ज्ञान समाया।।
मोटी पोथी सभी हटा दो।
बस्ते का अब भार घटा दो।।
एक पुस्तिका पेन चाहिए।
हमको मन में चैन चाहिए।।
कम्प्यूटर जी पाठ पढ़ायें।
हम बच्चों का ज्ञान बढ़ाये।
इतने से चल जाये काम।
छोटा बस्ता हो आराम।।
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07 अगस्त, 2013
"चिड़िया रानी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक.)
मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
एक बालकविता
"चिड़िया रानी"
चिड़िया रानी फुदक-फुदक कर,
मीठा राग सुनाती हो।
आनन-फानन में उड़ करके,
आसमान तक जाती हो।।
मेरे अगर पंख होते तो,
मैं भी नभ तक हो आता।
पेड़ो के ऊपर जा करके,
ताजे-मीठे फल खाता।।
जब मन करता मैं उड़ कर के,
नानी जी के घर जाता।
आसमान में कलाबाजियाँ कर के,
सबको दिखलाता।।
सूरज उगने से पहले तुम,
नित्य-प्रति उठ जाती हो।
चीं-चीं, चूँ-चूँ वाले स्वर से ,
मुझको रोज जगाती हो।।
तुम मुझको सन्देशा देती,
रोज सवेरे उठा करो।
अपनी पुस्तक को ले करके,
पढ़ने में नित जुटा करो।।
चिड़िया रानी बड़ी सयानी,
कितनी मेहनत करती हो।
एक-एक दाना बीन-बीन कर,
पेट हमेशा भरती हो।।
अपने कामों से मेहनत का,
पथ हमको दिखलाती हो।।
जीवन श्रम के लिए बना है,
सीख यही सिखलाती हो।
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03 अगस्त, 2013
"लिखना-पढ़ना सिखला दो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक.)
मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
एक बालकविता
"लिखना-पढ़ना सिखला दो"
भैया! मुझको भी,
लिखना-पढ़ना, सिखला दो।
क.ख.ग.घ, ए.बी.सी.डी,
गिनती भी बतला दो।।
पढ़ लिख कर मैं,
मम्मी-पापा जैसे काम करूँगी।
दुनिया भर में,
बापू जैसा अपना नाम करूँगी।।
रोज-सवेरे, साथ-तुम्हारे,
मैं भी उठा करूँगी।
पुस्तक लेकर पढ़ने में,
मैं संग में जुटा करूँगी।।
बस्ता लेकर विद्यालय में,
मुझको भी जाना है।
इण्टरवल में टिफन खोल कर,
खाना भी खाना है।।
छुट्टी में गुड़िया को,
ए.बी.सी.डी, सिखलाऊँगी।
उसके लिए पेंसिल और,
इक कापी भी लाऊँगी।।
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