यह ब्लॉग खोजें

21 मार्च, 2018

विश्व कविता-दिवस "भूखी गइया कचरा चरती" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

विश्व कविता दिवस पर
प्रस्तुत है आज एक बाल कविता
सड़क  किनारे जो भी पाया,
पेट उसी से यह भरती है।
मोहनभोग समझकर,
भूखी गइया कचरा चरती है।। 
 
कैसे खाऊँ मैं कचरे को,
बछड़ा मइया से कहता है।
दूध सभी दुह लेता मालिक,
उदर मेरा भूखा रहता है।। 

भोजन की आशा में बछड़ा,
इधर-उधर को ताक रहा है।
कोई चारा लेकर आये,
दरवाजे को झाँक रहा है।।

हरी घास के लाले हैं तो,
भूसा मुझे खिलाओ भाई।
मेरे हिस्से की खा जाते,
तुम सारी ही दूध-मलाई।।

1 टिप्पणी:

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।