आमों के बागों में जाकर,
आम टोकरी भरकर लाया!
घर के लोगों ने जी भरकर,
चूस-चूस कर इनको खाया!!
प्राची बिटिया और प्रांजल,
बड़े चाव से इनको खाते!
मीठे-मीठे और रसीले,
आम बहुत सबको हैं भाते!!
राज-दुलारो, नन्हे-मुन्नों,
कल मुझको तुम भूल न जाना!
जब मैं बूढ़ा हो जाऊँगा,
इसी तरह तुम मुझे खिलाना!!
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06 जुलाई, 2014
"मीठे-मीठे और रसीले" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह मुँह में पानी आ रहा है :)
जवाब देंहटाएंबच्चों के पाठ्यक्रम में लगाने योग्य बाल कविता |
जवाब देंहटाएंताजे-ताजे रसीले आम ...खाने को जी ललचा रहा है
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर आम, और कविता बहुत ही मीठी!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआम के स्वाद की तरह ही बहुत सुन्दर रचना...
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