गया आम का मौसम,
प्लम बाजारों में अब छाया।
इनको देख-देख कर देखो,
सबका मन ललचाया।।
लाल-लाल हैं जितने पोलम,
वो हैं खट्टे-मीठे,
लेकिन जो महरून रंग के,
वो लगते हैं मीठे,
पर्वत से शृंगार उतर कर,
मैदानों में आया।
अल्मौड़ा, चौखुटिया,
नैनीताल और चम्पावत,
प्लम के पेड़ों के बागीचे,
फैले हैं बहुतायत,
हरे-भरे इन वृक्षों ने है,
मन को बहुत लुभाया।
मार शीत की झेल-झेल,
शीतल फल हुए रसीले,
बारिश का पानी पीकर,
हो जाते नीले-पीले,
बच्चों और बड़ों ने इनको
बहुत चाव से खाया।
बेहतरीन पंक्तियाँ और सुंदर तसवीरें. मज़ा आ गया आज
जवाब देंहटाएंसुंदर ||
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पंक्तियाँ और सुंदर तसवीरें
जवाब देंहटाएंबेहतरीन .
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंआभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
अरे वाह प्लम ...मुझे भी बहुत अच्छा लगता है.... आपकी कविता भी प्यारी है...
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंआभार,
सुंदर प्रस्तुति,बहुत सुंदर चित्र....
जवाब देंहटाएंइन्हें प्लम कहते हैं या पुलम? मैंने तो पुलम सुना है।
जवाब देंहटाएंऔर शायद लोकाट भी तो यही होता है।