मुक्त परीक्षा से होकर, हम अपने घर में आये। हमें देखकर दादा-दादी, फिर आये माँ के दरबार।
अपना शीश नवाया हमने,
माँ की महिमा अपरम्पार।
भूख लगी तो बाबा जी ने,
चाट-पकौड़े खिलवाये।
हमें देखकर दादा-दादी, फूले नहीं समाये।।
देहरादून हमारे पापा,
सरकारी सेवा करते हैं।
इसीलिए हम भी तो,
उनके साथ-साथ रहते हैं।
बहुत दिनों के बाद,
खटीमा के दर्शन कर पाये।
हमें देखकर दादा-दादी, फूले नहीं समाये।। |
बाबा को प्यारा लगे, मूल से ज्यादा सूद ।
जवाब देंहटाएंएह्सासें फिर से वही, बालक रूप वजूद ।
बालक रूप वजूद, मिली मन बाल सुन्दरी।
संस्कार मजबूत, चढाते लाल चूनरी ।
मेला सर्कस देख, चाट भी जमके चाबा ।
करें खटीमा मौज, साथ में दादी बाबा ।।
वाह बहुत खूबसूरत अन्दाज़ मे बाल कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्यारी कविता बचपन की याद आ गयी ...सच कितने अच्छे दिन थे ...कितना हल्का हल्का सा मन होता था परीक्षा होने के बाद ...जाने कहाँ गए वो दिन ....
जवाब देंहटाएंbahut sundar bhavon ki abhivyakti ...aabhar .
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना...
जवाब देंहटाएंसादर.
बाल कविताओं के तो आप शहंशाह हैं ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
बहुत सुंदर भाव ....
जवाब देंहटाएंदादा दादी के साथ बच्चों की खुशी देखते ही बन रही है...कविता में भी खुशी झलक रही है...बहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंवाह! सचमुच परीक्षाओं के बाद की ये मस्ती अनोखी होती है मै भी पूरे साल इन छुट्टियों का इंतज़ार करती हूँ... लेकिन हमें तो ये लंबी छुट्टियाँ परीक्षाओं के बाद नहीं बल्कि बल्कि नया सेशन शुरू होने के एक महीने बाद मिलती हैं... पर इस प्यारी सी कविता को पढने के बाद तो मन कर रहा है कि मैं बस अभी ही उड़कर वहाँ पहुँच जाऊं....:)))
जवाब देंहटाएंदादा-दादी को लगे भरा-पूरा संसार
जवाब देंहटाएंपोतों की अटखेलियां,बाकी सब बेकार
बहुत प्यारी कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबच्चों के मन को खूब अभिव्यक्त किया आपने
जवाब देंहटाएंदादू के रंग ,बच्चों के संग ,बाकी सब दंग .
जवाब देंहटाएंबढ़िया जुड़ाव अगली पीढ़ी के साथ .बढिया बाल गीत ,खेल खेल में शिक्षण .संस्कार की चाबी थमा रहें हैं दादू .
अविरल प्रवाह, सरल शब्द और सारस भावाभिव्यक्ति, बहुत ख़ूब शास्त्रीजी
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