कभी झगड़ते हैं आपस में, कभी दोस्त बन जाते हैं। मन में मैल नहीं रखते जो, वो बच्चे कहलाते हैं।। तन से चंचल, भोले-भाले, नित्य दिखाते खेल निराले, किस्से-कथा-कहानी में जो, जिज्ञासा दिखलाते हैं। मन में मैल नहीं रखते जो, वो बच्चे कहलाते हैं।। कुत्ता-बिल्ली, गैया-बकरी, चिड़िया अच्छी लगती है, रोज नया कुछ करने की, मन में अभिलाषा जगती है, मीठी-मीठी बातों से ये, सबका मन बहलाते हैं। मन में मैल नहीं रखते जो, वो बच्चे कहलाते हैं।। बच्चे घर की हैं फुलवारी, बच्चों की है शान निराली, जाति-पाति और छुआ-छूत ये, कभी नहीं अपनाते हैं। मन में मैल नहीं रखते जो, वो बच्चे कहलाते हैं।। |
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28 अप्रैल, 2012
"सबका मन बहलाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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मन में मैल नहीं रखते जो,
जवाब देंहटाएंवो बच्चे कहलाते हैं।।
....काश यह बचपन की विशेषता सदैव बनी रहे...बहुत सुंदर प्रस्तुति...आभार
बहुत बढ़िया गीत -
जवाब देंहटाएंसादर बधाई ।।
चौबीस घंटे मस्ती कर के , नए रंग दुनिया में भरता ।
मन मैला कैसे हो पाए , प्रेम स्वयं प्रक्षालन करता ।
मस्ती के घंटो से निकले , संस्कार मानवता के स्वर ।
आज बड़ों की मस्ती गायब, इसीलिए जीवन भर *खरभर ।।
*शोर-गुल / चिल्ल-पों
मन में मैल नहीं रखते जो,
जवाब देंहटाएंवो बच्चे कहलाते हैं।।
बहुत सुंदर प्रस्तुति,आभार......
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति | आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
बच्चे घर की हैं फुलवारी,
जवाब देंहटाएंबच्चों की है शान निराली,
जाति-पाति और छुआ-छूत ये,
कभी नहीं अपनाते हैं।
मन में मैल नहीं रखते जो,
वो बच्चे कहलाते हैं।।
बहुत ही प्यारी, दुलारी, मनोहारी कविता.
बहुत ही अच्छी और सच्ची प्रस्तुति..!!!!
जवाब देंहटाएंमन में मैल नहीं रखते जो,वो बच्चे कहलाते हैं।।
जवाब देंहटाएंsahi kaha
बहुत सुंदर सार्थक गीत काश बच्चों जैसा मन सभी रख पाते ....
जवाब देंहटाएंachchi rachana .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ......
जवाब देंहटाएंबालकविता में बालसुलभ छवि को बड़ी सुन्दरता से उकेरा गया है |
जवाब देंहटाएंसुधा भार्गव
bahut badhiya ....
जवाब देंहटाएंजाति-पाति और छुआ-छूत ये,
जवाब देंहटाएंकभी नहीं अपनाते हैं।
मन में मैल नहीं रखते जो,
वो बच्चे कहलाते हैं।।
काश! बडे, बच्चों के मन को आदर्श मानकर अनुसरण करें तो दुनिया की रंगत बदल सकती है।
मन में मैल नहीं रखते जो,वो बच्चे कहलाते हैं।।
जवाब देंहटाएंachcha geet hai