मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
"मेरा बस्ता"
मेरा बस्ता कितना भारी। बोझ उठाना है लाचारी।। मेरा तो नन्हा सा मन है। छोटी बुद्धि दुर्बल तन है।। पढ़नी पड़ती सारी पुस्तक। थक जाता है मेरा मस्तक।। रोज-रोज विद्यालय जाना। बड़ा कठिन है भार उठाना।।
कम्प्यूटर का युग अब आया।
इसमें सारा ज्ञान समाया।। मोटी पोथी सभी हटा दो। बस्ते का अब भार घटा दो।। थोड़ी कॉपी, पेन चाहिए। हमको मन में चैन चाहिए।। कम्प्यूटर जी पाठ पढ़ायें। हम बच्चों का ज्ञान बढ़ाये। इतने से चल जाये काम। छोटा बस्ता हो आराम।। |
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11 अप्रैल, 2014
"कितना भारी मेरा बस्ता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर :)
जवाब देंहटाएंबाल मन का बड़ा ही सटीक चित्रण और आज के शैक्षिक नीतियों पर भी कुठाराघात, सुन्दर!
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