मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
एक शिशुकविता
"चले देखने मेला"
हाथी दादा सूँड उठाकर
चले देखने मेला!
बंदर मामा साथ हो लिया
बनकर उनका चेला!
चाट-पकौड़ी ख़ूब उड़ाई
देख चाट का ठेला!
बहुत मज़े से फिर दोनों ने
जमकर खाया केला!
फिर आपस में दोनों बोले,
अच्छा लगा बहुत मेला!
जंगल में सबको बतलाया,
देखा हमने मेला!
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15 अप्रैल, 2014
"शिशु कविता-चले देखने मेला" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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waah bahut badhiya .....
जवाब देंहटाएंमेले के मज़े खूब बढ़िया रहे !
जवाब देंहटाएंसुन्दर बाल रचना
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