गुड़िया गुझिया बना रही है, दादी पूड़ी बेल रही है।
कभी-कभी पिचकारी लेकर, रंगों से वह खेल रही है।।
तलने की आशा में आतुर गुझियों की है लगी कतार।
घर-घर में खुशियाँ उतरी हैं, होली का आया त्यौहार।।
मम्मी जी दे दो खाने को, गुझिया-मठरी का उपहार। सजता गुड़िया के नयनों में, मिष्ठानों का मधु-संसार।।
सजे-धजे हैं बहुत शान से मीठे-मीठे शक्करपारे। कोई पीला, कोई गुलाबी, आँखों को ये लगते प्यारे।।
होली का अवकाश पड़ गया, दही-बड़े कल बन जायेगें। चटकारे ले-लेकर इनको, बड़े मजे से हम खायेंगे।।
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सुन्दर कविता और ललचाते व्यंजन .....
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