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आज हमारे लिए हमारे,
बाबा जी लाये स्कूटी।
वैसे तो काले रंग की है,
लेकिन लगती बीरबहूटी।।
इस प्यारी सी स्कूटी में,
खर्च नहीं बिल्कुल ईंधन का।
चार्ज करो इसको बिजली से,
संवाहक यह संसाधन का।।
अपने घर से विद्यालय की,
थोड़ी सी ज्यादा है दूरी।
पैदल-पैदल जाना पड़ता,
भारी बस्ता है मजबूरी।।
मेरा भइया स्कूटी को,
सीख रहा है अभी चलाना।
इसी सवारी से अब अपना,
विद्यालय को होगा जाना।।
मैं भी खुश हूँ, भइया भी खुश,
नयी सवारी को पा करके।
समय बचेगा, श्रम कम होगा,
पढ़ें-लिखेंगे हम जी भर के।।
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14 अगस्त, 2015
बालकविता "प्रांजल-प्राची की नयी स्कूटी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंHAPPY INDEPENDENCE DAY
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता है अंकल,
जवाब देंहटाएंमैं अभी छोटा हूँ इसलिए
मेरे पास तो नहीं है कोई स्कूटी
लेकिन मेरी साइकिल है
प्यारी सी और छोटी
बड़ा होकर मैं भी चलाऊँगा
ये सुन्दर सी स्कूटी
.... मेरी और भी ढेर सारी बातें करने के लिए मेरे घर यानि मेरे ब्लॉग पे भी आइयेगा अंकल
नमस्ते!!!