तीखी-तीखी और चर्परी।
हरी मिर्च थाली में पसरी।।
तोते इसे प्यार से खाते।
मिर्च देखकर खुश हो जाते।।
सब्ज़ी का यह स्वाद बढ़ाती।
किन्तु पेट में जलन मचाती।।
जो ज्यादा मिर्ची खाते हैं।
सुबह-सुबह वो पछताते हैं।।
दूध-दही बल देने वाले।
रोग लगाते, मिर्च-मसाले।।
शाक-दाल को घर में लाना।
थोड़ी मिर्ची डाल पकाना।।
सदा सुखी जीवन अपनाओ।
तीखी-मिर्च सदा कम खाओ।।
हरी मिर्च थाली में पसरी।।
तोते इसे प्यार से खाते।
मिर्च देखकर खुश हो जाते।।
सब्ज़ी का यह स्वाद बढ़ाती।
किन्तु पेट में जलन मचाती।।
जो ज्यादा मिर्ची खाते हैं।
सुबह-सुबह वो पछताते हैं।।
दूध-दही बल देने वाले।
रोग लगाते, मिर्च-मसाले।।
शाक-दाल को घर में लाना।
थोड़ी मिर्ची डाल पकाना।।
सदा सुखी जीवन अपनाओ।
तीखी-मिर्च सदा कम खाओ।।
हमने तो यही सुना था कि हरी मिर्च खाने से शरीर की पाचन शकित ठीक रहती है।
जवाब देंहटाएंजाट देवता संदीप पवाँर बेटा!
जवाब देंहटाएंमैंने तो कहीं भी इस कविता में हरीमिर्च खाने को मना नहीं किया है।
मगर आप ज्यादा मत खा लेना। नहीं तो सुबह यह अपना रंग जरूर दिखा देंगी!
जी आपने सही कहा, नहीं तो सुबह खूब पछताना पडॆगा। हा-हा-हा
जवाब देंहटाएंतीखी मिर्च पर मीठी कविता बहुत सुन्दर लगी|
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर कविता बन गयी तीखी मिर्च पर्।
जवाब देंहटाएंअच्छी सीख देती मजेदार कविता बन गयी बच्चों और बड़ों के लिये
जवाब देंहटाएंबच्चों के लिये सही सलाह,वैसे बडों को भी इसका उपयोग मात्रा में ही करना चाहिये.धन्यवाद,
जवाब देंहटाएंतीखी मिर्ची का कमाल देखने को मिला .....आभार
जवाब देंहटाएंमिर्ची पर कमाल की प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंमिर्च ने कमाल कर दिया.गजब के तेवर हैं
जवाब देंहटाएंबहुत मज़ेदार है, यह कविता!
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मुस्कानों की निश्छल आभा!