पापा की लग गई नौकरी, देहरादून नगर बाबा। कैसे भूलें प्यार आपका, नहीं सूझता कुछ बाबा।। छोटा घर है, नया नगर है, सर्द हवा चलती सर-सर है, बन जायेंगे नये दोस्त भी, अभी अकेले हैं बाबा। प्यारे चाचा-दादी जी की, हमको याद सताती है, विद्यालय की पीली बस भी, गलियों में नहीं आती है, भीड़ बहुत है इस नगरी में, मँहगाई भी है बाबा। आप हमारे लिए रोज ही, रचनाएँ रच देते हो, बच्चों के मन की बातों को, सहज भाव से कहते हो, ब्लॉग आपका बिना नेट के, कैसे हम देखें बाबा। छोटी बहना प्राची को तो, बाबा-दादी प्यारी थी, छोटी होने के कारण वो, सबकी बहुत दुलारी थी। बहुत अकेली सहमी सी है, गुड़िया रानी जी बाबा। गर्मी की छुट्टी होते ही, अपने घर हम आयेंगे, जो भी लिखा आपने बाबा, पढ़कर वो हम गायेंगे, जब भी हो अवकाश आपको, मिलने आना तुम बाबा। |
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20 जनवरी, 2012
"मिलने आना तुम बाबा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत ही बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बाल मन की सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबाबा-दादी का प्यार-दुलार बच्चे मिस करते हैं...बहुत सुंदर कविता!
जवाब देंहटाएंप्रेम और ममता से ओत-प्रोत सुन्दर बाल गीत..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बाल गीत
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ...... भाव सीधे दिल से निकले है|
जवाब देंहटाएंओह! आपकी प्रस्तुति दादा दादी की आँखों में
जवाब देंहटाएंआँसू जरूर ला रही होगी.
भोली भाली प्यारी सी प्रस्तुति के लिए आभार जी.
साधु-साधु
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी कविता
जवाब देंहटाएंदादी बाबा के साथ बच्चों के प्यारे संबंधों को चित्रित करती कविता
जवाब देंहटाएंजब भी हो अवकाश आपको,
जवाब देंहटाएंमिलने आना तुम बाबा। bahut badhiyaa.
जब भी हो अवकाश आपको,
जवाब देंहटाएंमिलने आना तुम बाबा।
आदरणीय शास्त्री जी जब भी हो अवकाश आपको,
मिलने आना तुम बाबा।
बच्चों के पास जरुर जाइए प्यार लुटाने ..सुन्दर बाल रचना प्रेम और मजबूरियों को दर्शाती ..
आभार
भ्रमर ५