मेढक लाला बहुत निराला!
टर्र-टर्र चिल्लाने वाला!
मेढक लाला बहुत निराला!!
कभी कुमुद के नीचे छिपता,
और कभी ऊपर आ जाता,
जल-थल दोनों में ही रहता,
तभी उभयचर है कहलाता,
पल-पल रंग बदलने वाला!
मेढक लाला बहुत निराला!!
लगता है यह बहुत भयानक,
किन्तु बहुत है सीधा-सादा,
अगर जरा भी आहट होती,
झट से पानी में छिप जाता,
उभरी-उभरी आँखों वाला!
मेढक लाला बहुत निराला!!
मुण्डी बाहर करके अपनी,
इधर-उधर को झाँक रहा है,
कीट-पतंगो को खाने को,
देखो कैसा ताँक रहा है,
उछल-उछल कर चलने वाला!
मेढक लाला बहुत निराला!!
(छायांकनःडॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
वाह .गाने योग्य बालगीत ,बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता...मेढकों के चित्र भी प्यारे हैं|
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी बालकविता|
जवाब देंहटाएंbahut sundar balkavita.
जवाब देंहटाएंगाने योग्य बालगीत ,बधाई /
जवाब देंहटाएंटर्र-टर्र चिल्लाने वाला!
जवाब देंहटाएंमेढक लाला बहुत निराला!!
....bahut badiya baalgeet..
prastuti hetu aabhar!
अच्छी लगी बाल रचनाएँ
जवाब देंहटाएंGyan Darpan
..
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा मंच-756:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
प्यारे प्यारे मेंढक जी के बारे में सरलता से ज्ञान मिल रहा है ....बहुत बढ़िया
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