रोज सवेरे मैं उठ जाता।
कुकड़ूकूँ की बाँग लगाता।।
कहता भोर हुई उठ जाओ।
सोने में मत समय गँवाओ।।
आलस छोड़ो, बिस्तर त्यागो।
मैं भी जागा, तुम भी जागो।।
पहले दिनचर्या निपटाओ।
फिर पढ़ने में ध्यान लगाओ।।
अगर सफलता को है पाना।
सेवा-भाव सदा अपनाना।।
मुर्गा हूँ मैं सिर्फ नाम का।
सेवक हूँ मैं बहुत काम का।।
बहुत ही सुन्दर बाल कविता………जिसे आज सब भूल चुके हैं आपने आज उसे याद करा दिया।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है
जवाब देंहटाएंमुर्गे की प्यारी सी कविता .........
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है
जवाब देंहटाएंमजा आया गाने में....आभार
जवाब देंहटाएंकित्ती प्यारी कविता...बधाई.
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