चंचल-चंचल, मन के सच्चे।
सबको अच्छे लगते बच्चे।।
कितने प्यारे रंग रंगीले।
उपवन के हैं सुमन सजीले।।
भोलेपन से भरमाते हैं।
ये खुलकर हँसते-गाते हैं।।
भेद-भाव को नहीं मानते।
बैर-भाव को नहीं ठानते।।
काँटों को भी मीत बनाते।
नहीं मैल मन में हैं लाते।।
जीने का ये मर्म बताते।
प्रेम-प्रीत का कर्म सिखाते।।
शास्त्री जी, बच्चो का प्यारा परिचय, आपका स्नेह, सब बच्चो की धरोहर बने, सुन्दर भावाव्यक्ति के लिए धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंजीने का ये मर्म बताते।
जवाब देंहटाएंप्रेम-प्रीत का कर्म सिखाते....
बहुत अच्छी रचना के लिए बधाई।
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंभेद-भाव को नहीं मानते।बैर-भाव को नहीं ठानते।।
जवाब देंहटाएंकाँटों को भी मीत बनाते।नहीं मैल मन में हैं लाते।।
जीने का ये मर्म बताते।प्रेम-प्रीत का कर्म सिखाते।।
वाह! कितनी सुन्दर बात कही है……………जीने को प्रेरित करती बेहद खूबसूरत रचना मन को भा गयी।
काँटों को भी मीत बनाते।नहीं मैल मन में हैं लाते।।
जवाब देंहटाएंजीने का ये मर्म बताते।प्रेम-प्रीत का कर्म सिखाते।
क्या बात है...बहुत सुंदर।
बहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता ....
जवाब देंहटाएंवाकई बहुत सुन्दर बाल कविता है...
जवाब देंहटाएंआद. शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंआपके इस कविता की जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है !
इतने सुन्दर भाव इतनी सरलता से आपने अभिव्यक्त किया है कि शब्द शब्द जीवंत हो उठे हैं !
बधाई और साधुवाद !