काले रंग का चतुर-चपल,
पंछी है सबसे न्यारा।
डाली पर बैठा कौओं का,
जोड़ा कितना प्यारा।
नजर घुमाकर देख रहे ये,
कहाँ मिलेगा खाना।
जिसको खाकर कर्कश स्वर में,
छेड़ें राग पुराना।।
काँव-काँव का इनका गाना,
सबको नहीं सुहाता।
लेकिन बच्चों को कौओं का,
सुर है बहुत लुभाता।।
कोयलिया की कुहू-कुहू,
बच्चों को रास न आती।
कागा की प्यारी सी बोली,
इनका मन बहलाती।।
देख इसे आँगन में,
शिशु ने बोला औआ-औआ।
खुश होकर के काँव-काँवकर,
चिल्लाया है कौआ।।
बहुत खूब शास्त्री जी ... बात सही है बच्चो को कोयल से ज्यादा कौआ ही ज्यादा भाता है ... कौआ उन्हें अक्सर दिख जो जाता है !
जवाब देंहटाएंदेख इसे आँगन में,
जवाब देंहटाएंशिशु ने बोला औआ-औआ।
खुश होकर के काँव-काँवकर,
चिल्लाया है कौआ।।
यही तो बच्चो की दुनिया है जो हमे पसन्द नही आता मगर उन्हे सब भाता है …………तभी बच्चो को मासूम कहा गया है ………बिना भेदभाव के होते है उनके मन्………॥बहुत सुन्दर रचना।
मान्यवर्!
जवाब देंहटाएंबहुत सही वस्तुस्थिति का चित्रण है................अच्छी कविता।
बच्चों को कौवों की बोली सचमुच अच्छी लगती है...............रोते हुए वे चुप हो जाते हैं।
बहुत सुन्दर ...बच्चों को कौए की कांव कांव बहुत अच्छी लगती है क्यों कि कहा जाता है कि घर की छत पर कौआ बोलने पर कोई महमान घर में आता है...
जवाब देंहटाएंhttp://bachhonkakona.blogspot.com/
शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बाल कविता है........................शिशु बोला औआ-औआ
कौआ की बहुत सुंदर कविता ...
जवाब देंहटाएंशिशु ने बोला औआ-औआ
जवाब देंहटाएं--
मुझे तो लगता है कि इस कविता का
शीर्षक भी यही होना चाहिए!
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अभिनव बिंबों से सजी सुंदर कविता!
सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता-
जवाब देंहटाएंचित्र भी सुंदर .
इस दृष्टिकोण से कभी कांव -कांव नहीं सुनी थी -
अब वो भी अच्छी लगेगी -
आपको बधाई -
बहुत सुंदर रचना !!
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी , बच्चो के मन खूब समझते है आप, कौआ बच्चो का सबसे पसंदीदा साथी है , हाथ उठाकर वो उससे मेहमान के आने की बात भी पूछते है.. बाल सुलभ कविता बधाई
जवाब देंहटाएंलिजिये पॉडकास्ट....भी सुनाईये.....औआ--औआ...
जवाब देंहटाएंगीत सुन भी लिया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत सुन्दर कविता...प्यारी लगी.
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