नभ में उड़ती इठलाती है।
मुझको पतंग बहुत भाती है।।
रंग-बिरंगी चिड़िया जैसी,
लहर-लहर लहराती है।।
कलाबाजियाँ करती है जब,
मुझको बहुत लुभाती है।।
इसे देखकर मुन्नी-माला,
फूली नहीं समाती है।।
पाकर कोई सहेली अपनी,
दाँव-पेंच दिखलाती है।।
मुझको बहुत कष्ट होता है।
जब पतंग कट जाती है।।
इतनी प्यारी पतंग कटने पर दुख तो होगा ही। बहुत प्यारी कविता। बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह सुंदर रचना है ये.
जवाब देंहटाएंअरे वाह्…………बहुत सुन्दर रचना है पतंग पर्।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बात है गुरु जी, बचपन की याद दिला दी जब मैं भी पतंगे उड़ाया करता था और लम्बी से लकड़ी ले के रेल की पटरियों पे पतंगे लूटने जाया करता था!
जवाब देंहटाएंबार-बार गाने लायक बाल गीत।
जवाब देंहटाएंरंग बिरंगे पतंगों की तरह कविता भी बहुत ख़ूबसूरत है!
जवाब देंहटाएंमुझको बहुत कष्ट होता है।
जवाब देंहटाएंजब पतंग कट जाती है।।
दुख तो लाजिमी है... सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर बाल गीत ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना लगी नानाजी ....धन्यवाद
जवाब देंहटाएंरंग बिरंगे पतंगों वाली सुंदर कविता ...
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