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12 मार्च, 2011

"मुझको पतंग बहुत भाती है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


नभ में उड़ती इठलाती है।
मुझको पतंग बहुत भाती है।।

रंग-बिरंगी चिड़िया जैसी,
लहर-लहर लहराती है।।

कलाबाजियाँ करती है जब,
मुझको बहुत लुभाती है।।

इसे देखकर मुन्नी-माला,
फूली नहीं समाती है।।

पाकर कोई सहेली अपनी,
दाँव-पेंच दिखलाती है।।

मुझको बहुत कष्ट होता है।
जब पतंग कट जाती है।।

10 टिप्‍पणियां:

  1. इतनी प्यारी पतंग कटने पर दुख तो होगा ही। बहुत प्यारी कविता। बधाई।

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  2. अरे वाह्…………बहुत सुन्दर रचना है पतंग पर्।

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  3. बहुत बढ़िया बात है गुरु जी, बचपन की याद दिला दी जब मैं भी पतंगे उड़ाया करता था और लम्बी से लकड़ी ले के रेल की पटरियों पे पतंगे लूटने जाया करता था!

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  4. रंग बिरंगे पतंगों की तरह कविता भी बहुत ख़ूबसूरत है!

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  5. मुझको बहुत कष्ट होता है।
    जब पतंग कट जाती है।।
    दुख तो लाजिमी है... सुन्दर रचना

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  6. बहुत अच्छी रचना लगी नानाजी ....धन्यवाद

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  7. रंग बिरंगे पतंगों वाली सुंदर कविता ...

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