वेबकैम पर हिन्दी में प्रकाशित "पहली बाल रचना" वेबकैम की शान निराली। करता घर भर की रखवाली।। दूर देश में छवि पहुँचाता। यह जीवन्त बात करवाता।। आँखें खोलो या फिर मींचो। तरह-तरह की फोटो खींचो। कम्प्यूटर में इसे लगाओ। घर भर की वीडियो बनाओ।। चित्रों से मन को बहलाओ। खुद देखो सबको दिखलाओ।। छोटा सा है प्यारा सा है। बिल्कुल राजदुलारा सा है।। मँहगा नहीं बहुत सस्ता है। तस्वीरों का यह बस्ता है।। नवयुग की यह है पहचान। वेबकैम है बहुत महान।। |
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15 जून, 2011
"वेबकैम की शान निराली" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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सच में वेबकैम की शान निराली है...सुन्दर
जवाब देंहटाएंसचमुच है यह बहुत महान!
जवाब देंहटाएंसच में वेबकैम की महिमा न्यारी...
जवाब देंहटाएंसचमुच बहुत सुन्दर...!
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी आपका बाल मन बेहद सुलभ प्रस्तुति प्रदान करता है बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर - मन को छूती बाल कविता .
जवाब देंहटाएंअपने में अनूठी और पहली भी .
आप उत्तराखंड के बाल साहित्य को यों ही सम्रद्ध करें , यही कामना है .
साभार
आपसे कोई विषय अछूता नहीं रहेगा ..सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबाल साहित्य को समृद्ध करती बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंसही कहा ...बेहतरीन गीत...
जवाब देंहटाएंwaah bahut achhi baat kahi sir .......web cam ke liye ..
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