प्यारी-प्यारी गुड़िया जैसी, बिटिया तुम हो कितनी प्यारी। मोहक है मुस्कान तुम्हारी, घर भर की तुम राजदुलारी।। नये-नये परिधान पहनकर, सबको बहुत लुभाती हो। अपने मन का गाना सुनकर, ठुमके खूब लगाती हो।। निष्ठा तुम प्राची जैसी ही, चंचल-नटखट बच्ची हो। मन में मैल नहीं रखती हो, देवी जैसी सच्ची हो।। दिनभर के कामों से थककर, जब घर वापिस आता हूँ। तुमसे बातें करके सारे, कष्ट भूल मैं जाता हूँ।। मेरे घर-आगँन की तुम तो, नन्हीं कलिका हो सुरभित। हँसते-गाते देख तुम्हें, मन सबका हो जाता हर्षित।। |
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04 जून, 2011
"घर भर की तुम राजदुलारी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत बढ़िया कविता है सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता।
जवाब देंहटाएं---------
कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत है?
ब्लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।
दिनभर के कामों से थककर,
जवाब देंहटाएंजब घर वापिस आता हूँ।
तुमसे बातें करके सारे,
कष्ट भूल मैं जाता हूँ।।
सुन्दर वास्तविक वात्सल्य
Beautiful poetry Shastri ji.
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