अतिवृष्टि
जब सूखे थे खेत-बाग-वन,
तब रूठी थी बरखा-रानी।
अब बरसी तो इतनी बरसी,
घर में पानी, बाहर पानी।।
बारिश से सबके मन ऊबे,
धानों के बिरुए सब डूबे,
अब तो थम जाओ महारानी।
घर में पानी, बाहर पानी।।
दूकानों के द्वार बन्द हैं,
शिक्षा के आगार बन्द है,
राहें लगती हैं अनजानी।
घर में पानी, बाहर पानी।।
गैस बिना चूल्हा है सूना,
दूध बिना रोता है मुन्ना,
भूखी हैं दादी और नानी।
घर में पानी, बाहर पानी।।
बाढ़ हो गयी है दुखदायी,
नगर-गाँव में मची तबाही,
वर्षा क्या तुमने है ठानी।
घर में पानी, बाहर पानी।।3 टिप्पणियाँ:
अति हर चीज की अच्छी नहीं होती है और अब तो वर्षा की अति हो चुकी है
सुन्दर् रचनागीत अच्छा है,
लेकिन अब तो यही मन हो रहा है
कि बरखा रानी फिर से कुछ दिनों के लिए रूठ जाएँ!इस बार की बारिश पर बिलकुल सटीक रचना ...अति हर चीज़ की बुरी होती है ..
बहुत अच्छी रचना...अच्छा लगा पढ़कर
जवाब देंहटाएंवाकई..अंदर पानी, बाहर पानी..यहां वहां हर जगह पानी
http://veenakesur.blogspot.com/
वर्षा कि विपदाओं को सही शब्द दिए आपने ....सुन्दर रचना . आभार
जवाब देंहटाएंनन्ही ब्लॉगर
अनुष्का
आपकी बात बिल्कुल सही अन्दर बाहर पानी हो जाता तो हम बच्चे खेल भी नहीं सकते
जवाब देंहटाएंआपकी कविता बहुत प्यारी और सही लगी
अति तो हर चीज़ की बुरी होती है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंआप के तरफ भी बाढ़ आयी हुई है , आप की कुशलता की कामना करता हूँ