यह ब्लॉग खोजें

26 अक्तूबर, 2010

“सेवों का मौसम है आया!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

IMG_2317देख-देख मन ललचाया है 
सेवों का मौसम आया है ।
कितना सुन्दर रूप तुम्हारा।
लाल रंग है प्यारा-प्यारा।। 
IMG_2314प्राची ने है एक उठाया।
खाने को है मुँह फैलाया।।
IMG_2321भइया ने दो सेव उठाये। 
दोनों हाथों में लहराये।।

प्राची कहती मत ललचाओ।
जल्दी से इनको खा जाओ।।

सेव नित्यप्रति जो खाता है।
वो ताकतवर बन जाता है।।

6 टिप्‍पणियां:

  1. सेव की बड़ी प्यारी कविता .... धन्यवाद मयंक अंकल

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्म्म यम यम .....सेंब तो मुझे भी बड़े पसंद है :)
    अनुष्का

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर कविता, सचमुच मेरा मन भी ललचा रहा है।

    जवाब देंहटाएं

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।