करती हूँ मैं इसको प्यार। यह देखो प्राची की कार।। जब यह फर्राटे भरती है, बिल्कुल शोर नही करती है, सिर्फ घूमते चक्के चार। यह देखो प्राची की कार।। जब छुट्टी का दिन आता है, करना सफर हमें भाता है, हम इससे जाते हरद्वार। यह देखो प्राची की कार।। गीत, गजल और भजन-कीर्तन, सुनो मजे से, जब भी हो मन, मंजिल यह कर देती पार। यह देखो प्राची की कार।। |
यह ब्लॉग खोजें
01 अक्तूबर, 2010
“प्राची की कार” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अरे वाह! प्राची की तरह ही उसकी कार भी बडी अच्छी है……………कितने काम आती है………………बहुत सुन्दर बाल गीत्।
जवाब देंहटाएंअरे वाह ! प्राची दी आपकी कार तो बिलकुल आपकी तरह ही बहुत प्यारी है और नानाजी की कविता भी कम नहीं ....ढ़ेर सारा प्यार !
जवाब देंहटाएंनन्ही ब्लॉगर
अनुष्का
प्राची करती इससे प्यार
जवाब देंहटाएंकितना सुन्दर प्राची की कार
प्राची की कार तो मस्त है...खूब घुमियेगा इससे.
जवाब देंहटाएंदेख ली हमने कार...अब हमे भी बिठाओ यार....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कार है!
जवाब देंहटाएंवाह यह तो बड़ी अच्छी कार है.... मुझे भी घूमना है इसमें तो ...
जवाब देंहटाएंप्राची की कार,प्राची और यह बालगीत सब कुछ बहुत ही सुन्दर और आकर्षक है।
जवाब देंहटाएं*प्राची की कार !
जवाब देंहटाएंअच्छी कार!
बधाई!!!