यह ब्लॉग खोजें

10 दिसंबर, 2010

“लड्डू हैं ये प्यारे-प्यारे!” (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)



लड्डू हैं ये प्यारे-प्यारे,
नारंगी-से कितने सारे!

बच्चे इनको जमकर खाते,
लड्डू सबके मन को भाते!

pranjal_laddu2

प्रांजल का भी मन ललचाया,
लेकिन उसने एक उठाया!

prachi_laddu

अब प्राची ने मन में ठाना,
उसको हैं दो लड्डू खाना!

तुम भी खाओ, हम भी खाएँ,
लड्डू खाकर मौज़ मनाएँ!

5 टिप्‍पणियां:

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।