नई कुंजियों को पा करके, पहले जैसा मस्त हो गया। संजीवनी चबा कर फिर से, बलशाली हनुमन्त हो गया। एकाकीपन की घड़ियों का, मित्र तुम्हीं से सींच रहा हूँ। तुमको वापिस पा जाने से, पतझड़ आज बसन्त हो गया। एकाकीपन की घड़ियों का, |
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09 अप्रैल, 2011
"पतझड़ आज बसन्त हो गया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंअब फिर यह बीमार न हो
बहुत सुन्दर..बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुभकामनायें और बधाई…………सच बसन्त हो गया।
जवाब देंहटाएंलैपटाप को सर्मपित सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबधाई हो आपका लैपटाप स्वस्थ हो गया
बहुत सुंदर लैपटॉप की कविता .....
जवाब देंहटाएंलैपटाप को सर्मपित बहुत सुन्दर रचना|धन्यवाद|
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