सुराही
पानी को ठण्डा रखती है,
मिट्टी से है बनी सुराही।
बिजली के बिन चलती जाती,
देशी फ्रिज होती सुखदायी।।
छोटी-बड़ी और दरम्यानी,
सजी हुई हैं सड़क किनारे।
शीतल जल यदि पीना चाहो,
ले जाओ सस्ते में प्यारे।।
इसमें भरा हुआ सादा जल,
अमृत जैसा गुणकारी है।
प्यास सभी की हर लेता है,
निकट न आती बीमारी है।।
अगर कभी बाहर हो जाना,
साथ सुराही लेकर जाना।
घर में भी औ' दफ्तर में भी,
इसके जल से प्यास बुझाना।।
शास्त्री जी, कोई विषय आपसे अछूता नहीं रह सकता।
जवाब देंहटाएंदूसरे, इस तरह कि कविता पढ़कर मन करता है, फिर से आठ-दस या उससे भी कम साल का हो जाऊं और आपकी गोद में बैठकर इन कविताओं को स-स्वर सुनूं!
अपनी टिप्पणी में मैं यह वार्तालाप दे रहा हूँ!
जवाब देंहटाएं--
मैं
मनोज कुमार जी!
मुझे आप गोद ले लीजिए। आपकी गोद में बैठकर बाल कविताएँ सुनाता रहूँगा!
मनोज
हाहाहा
फिर तो बात जमेगी नहीं
मैं
खूब गुजरेगी जब बैठेंगे दीवाने दो।
मनोज
हाहाहा
यह अच्छा जवाब रहा।
पर ये सुराही छोटी तो नहीं पड़ जाएगी।
जवाब देंहटाएं*
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(पानी की ही बात कर रहा हूं, कुछ और मत सोच लीजिएगा)!
आभार
जवाब देंहटाएंअदभुत
आप इस प्रस्तुति के लिए बधाई के सुपात्र हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति..हम अब भी देसी फ्रिज का पानी पीते हैं, क्योंकि गला खराब होने का डर नहीं होता..आप ने किसी विषय को अछूता नहीं छोड़ा..आभार
जवाब देंहटाएंइसमें भरा हुआ सादा जल,
जवाब देंहटाएंअमृत जैसा गुणकारी है।
प्यास सभी की हर लेता है,
निकट न आती बीमारी है।।
शास्त्री जी, कोई विषय आपसे अछूता नहीं रह सकता।
दूसरे, इस तरह कि कविता पढ़कर मन करता है, फिर से आठ-दस या उससे भी कम साल का हो जाऊं.
Sahmat.
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंयह सुराही तो वाकई लाजवाब है...
जवाब देंहटाएं________________________
'पाखी की दुनिया' में 'पाखी बनी क्लास-मानीटर' !!