जब गरमी की ऋतु आती है! लू तन-मन को झुलसाती है!!
तब आता तरबूज सुहाना!
ठण्डक देता इसको खाना!!
यह बाजारों में बिकते हैं!
फुटबॉलों जैसे दिखते हैं!!
एक रोज मन में यह ठाना!
देखें इनका ठौर-ठिकाना!!
पहुँचे जब हम नदी किनारे!
बेलों पर थे अजब नजारे!!
कुछ छोटे कुछ बहुत बड़े थे!
जहाँ-तहाँ तरबूज पड़े थे!!
इनमें से था एक उठाया!
बैठ खेत में इसको खाया!!
इसका गूदा लाल-लाल था!
ठण्डे रस का भरा माल था!! |
kavita ke sath sath photo bhi achche hai
जवाब देंहटाएंlal lal tarbooj ko dekhkar man lalchane laga
मजेदार तरबूजे की कविता
जवाब देंहटाएंवाह ! जी ! क्या बात है . बहुत मीठी सैर है यह तो . बधाई एक अच्छी कविता के लिए .
जवाब देंहटाएंमहोदय, मुझे तरबूज़ पर ये कविता बहुत अच्छी लगी आपके नाम के साथ मैं इसको एक टीवी प्रोग्राम के लिये इस्तेमाल करने की अनुमति चाहता हूं...उम्मीद है मिल जाएगी..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया