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05 अप्रैल, 2011

तरबूज सुहाना

जब गरमी की ऋतु आती है!
लू तन-मन को झुलसाती है!!


तब आता तरबूज सुहाना!
ठण्डक देता इसको खाना!!

watermelons-5556
यह बाजारों में बिकते हैं!
फुटबॉलों जैसे दिखते हैं!!


एक रोज मन में यह ठाना!
देखें इनका ठौर-ठिकाना!!


पहुँचे जब हम नदी किनारे!
बेलों पर थे अजब नजारे!!


कुछ छोटे कुछ बहुत बड़े थे!
जहाँ-तहाँ तरबूज पड़े थे!!

Watermelon field prachi

इनमें से था एक उठाया!
बैठ खेत में इसको खाया!!

Watermelon

इसका गूदा लाल-लाल था!
ठण्डे रस का भरा माल था!!

4 टिप्‍पणियां:

  1. kavita ke sath sath photo bhi achche hai
    lal lal tarbooj ko dekhkar man lalchane laga

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  2. वाह ! जी ! क्या बात है . बहुत मीठी सैर है यह तो . बधाई एक अच्छी कविता के लिए .

    जवाब देंहटाएं
  3. महोदय, मुझे तरबूज़ पर ये कविता बहुत अच्छी लगी आपके नाम के साथ मैं इसको एक टीवी प्रोग्राम के लिये इस्तेमाल करने की अनुमति चाहता हूं...उम्मीद है मिल जाएगी..
    शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं

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