कितना सुन्दर और सजीला।
खट्टा-मीठा और रसीला।।
हरे-सफेद, बैंगनी-काले। छोटे-लम्बे और निराले।।
शीतलता को देने वाले।
हैं शहतूत बहुत गुण वाले।। पारा जब दिन का बढ़ जाता। तब शहतूत बहुत मन भाता।
इसका वृक्ष बहुत उपयोगी। ठण्डी छाया बहुत निरोगी।।
टहनी-डण्ठल सब हैं बढ़िया।
इनसे बनती हैं टोकरियाँ।।
रेशम के कीड़ों का पालन।
निर्धन को देता है यह धन।।
आँगन-बगिया में उपजाओ।
खेतों में शहतूत लगाओ।। |
शहतूत के बारे में अच्छी जानकारी मिली ..बहुत रस भरी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .एकदम नए विषय पर बहुत ही प्यारी कविता . बधाई हो बधाई
जवाब देंहटाएंशहतूत पर कविता अच्छी लगी। बाल साहित्य लिखना बहुत कठिन होता है। बाल-साहित्य लिखने में आप सिद्धहस्त हैं।
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