उमड़-घुमड़ कर बादल आये।
घटाटोप अँधियारा लाये।।
काँव-काँव कौआ चिल्लाया।
लू-गरमी का हुआ सफाया।।
मोटी जल की बूँदें आईं।
आँधी-ओले संग में लाईं।।
धरती का सन्ताप मिटाया।
बिजली कड़की पानी आया।।
लगता है हमको अब ऐसा।
मई बना चौमासा जैसा।।
पेड़ों पर लीची हैं झूली।
बगिया में अमिया भी फूली।।
आम और लीची घर लाओ। जमकर खाओ, मौज मनाओ।। |
वाह शास्त्री जी, बालमन को एक गीत सुना दिया, मैंने अपने भतीजे को अभी-अभी दिया याद करने को जिससे वो कल स्कूल प्रयेर में गा सके , धन्यवाद एवं नमन .
जवाब देंहटाएंबच्चों को भरी बाल्टी आम खाते देखकर अपनी ननिहाल याद आ गई। जहां बाग़ होते हैं ये मंज़र वहीं नसीब होता है। रचना भी अच्छी है और फ़ोटो भी अच्छे हैं।
जवाब देंहटाएंhttp://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/05/life-partner.html
बच्चों को भरी बाल्टी आम खाते देखकर अपनी ननिहाल याद आ गई। जहां बाग़ होते हैं ये मंज़र वहीं नसीब होता है। रचना भी अच्छी है और फ़ोटो भी अच्छे हैं।
जवाब देंहटाएंhttp://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/05/life-partner.html
वाह शास्त्री जी बाल्टी में आम खाये हुए तो जमाना बीत गया अब तो प्लेट में काम चला लेतें है ...
जवाब देंहटाएंअच्छा स्वागत है मानसून का
जवाब देंहटाएंप्यारा बालगीत
यहाँ तो अभी बहुत गर्मी है .... आम और लीची ललचा रहे हैं ...बहुत सुन्दर बालगीत
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चित्रण किया है।
जवाब देंहटाएंमासूम भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंरेगिस्तान में बैठे बैठे आपके चित्रों और उन पर लिखी सुन्दर पंक्तियों को देख पढ़ कर लगा जैसे यहाँ भी लू गरमी का सफ़ाया हो गया हो..आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बालगीत|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
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