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03 मई, 2011

“मन खुशियों से फूला” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

parrotउमस भरा गरमी का मौसम,
तन से बहे पसीना!
कड़ी धूप में कैसे खेलें,
इसने सुख है छीना!!


कुल्फी बहुत सुहाती हमको,
भाती है ठण्डाई!
दूध गरम ना अच्छा लगता,
शीतल सुखद मलाई!!
पंखा झलकर हाथ थके जब,
हमने झूला झूला!
ठण्डी-ठण्डी हवा लगी तब,
मन खुशियों से फूला!!  

13 टिप्‍पणियां:

  1. गरमी के इस मौसम में
    प्राची को झूला झूलकर हवा खाते देखा,
    तो मन सचमुच ख़ुशियों से फूल उठा!

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  2. नमस्कार मयंक जी ..
    पहले तो सम्मान के लिये बहुत बहुत बधाई । आप जैसे कलम के धनी महानुभावो का आशीर्वाद की मुझे बहुत ही आवश्यकता है ।आप का मेरे ब्लांग मे आना मेरे लिये निश्चय ही उर्जा का काम करेगी ।
    धन्यवाद आभार सहित…..

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  3. ....प्यारी कविता .सम्मान के लिये बहुत बहुत बधाई .
    http://abhinavsrijan.blogspot.com/

    http://baalsahityalekhak.blogspot.com/

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  4. बहुत सुन्दर बाल कविता

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  5. aadarniy sir
    sach! garmi ke dino me ye hi sabhi cheeje man ko bhati hai chahe bachche ho ya bade.
    bahut bahut sundar laga aapka pyara sa bal-geet.
    hardik naman
    poonam

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  6. बाल-गीत लिखने में सिद्धहस्त हैं। अच्छी बाल कविता। साधुवाद।

    जवाब देंहटाएं

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