धूप और बारिश से,
जो हमको हैं सदा बचाते।
छाया देने वाले ही तो,
कहलाए जाते हैं छाते।।
आसमान में जब घन छाते,
तब ये हाथों में हैं आते।
रंग-बिरंगे छाते ही तो,
हम बच्चों के मन को भाते।।
तभी अचानक आसमान से,
मोटी-मोटी बूँदें आई।
प्रांजल ने उतार खूँटी से,
छतरी खोली और लगाई।।
प्राची ने जैसे ही देखा,
भइया छतरी ले आया है।
उसने भी प्यारा सा छाता,
अपने सिर पर फैलाया है।।
कई दिनों में वर्षा आई,
जाग गई मन में उमंग हैं।
भाई-बहन दोनों ही खुश हैं,
दो छातों के अलग रंग हैं।।
अति सुंदर. आप की यह कविता मुझे बचपन की याद दिलाती है.
जवाब देंहटाएं♥
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी
सादर प्रणाम !
कई दिनों में वर्षा आई,
जाग गई मन में उमंग हैं।
भाई-बहन दोनों ही खुश हैं,
दो छातों के अलग रंग हैं।।
वाह !
शास्त्री चाचा हर तरह के काव्य में सिद्धहस्त हैं … बहुत बढ़िया बाल कविता है !
♥ हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
pyara chhata:)
जवाब देंहटाएंjisko pyare shabdo me sir aapne aur nikhar diya........
बहुत बढ़िया बाल कविता ....
जवाब देंहटाएंप्राची ने जैसे ही देखा,
जवाब देंहटाएंभइया छतरी ले आया है।
उसने भी प्यारा सा छाता,
अपने सिर पर फैलाया है।।
वाह!बहुत अच्छी प्रस्तुति...
बहुत ही प्यारी कविता।
जवाब देंहटाएं---------
कल 09/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत प्यारी-प्यारी सी बढ़िया बाल कविता ....
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी बाल कविता।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर है ये बाल कविता, थैंक्यू अंकल! मैंने प्रांजल को प्रांजलि करके पढ़ा, (क्योंकि मेरा नाम प्रांजलि है न!) इसलिए मुझे तो लगा की ये कविता मेरे लिए ही है, क्योंकि मैं भी इसमें शामिल हूँ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर है आपकी यह बाल कविता....बचपन में तो लुभाते ही हैं रंग बिरंगे छाते मगर मुझे तो आज भी बहुत पसंद है यह रंग बिरंगे छाते ....धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बाल कविता
जवाब देंहटाएंइन्द्रधनुषी सप्त रंगों से सजी बेहद सुन्दर रचना....सादर !!!
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