♥ यह है अपना सच्चा भारत ♥
सुन्दर-सुन्दर खेत हमारे।
बाग-बगीचे प्यारे-प्यारे।।
पर्वत की है छटा निराली।
चारों ओर बिछी हरियाली।।
सूरज किरणें फैलाता है।
छटा अनोखी बिखराता है।।
तम हट जाता, जग जगजाता।
जन दिनचर्या में लग जाता।।
चहक उठे हैं घर-चौबारे।
महक उठे कच्चे-गलियारे।।
गइया जंगल चरने जाती।
हरी घास मन को ललचाती।।
नहीं बनावट, नहीं प्रदूषण।
यहाँ सरलता है आभूषण।।
खड़ी हुई मजबूत इमारत।
यह है अपना सच्चा भारत।।
kya bat hai jnab dil hi jit liya aapne to iqbaal shaayr ko bhi pichhe chhod diyaa jnaab badhaai ho .akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत कविता है आपकी, मगर अफसोस की अब यह पंक्तियाँ महज़ पंक्तियाँ ही रह गई है
जवाब देंहटाएंनहीं बनावट, नहीं प्रदूषण।
यहाँ सरलता है आभूषण।।
माफ कीजिएगा जो लगा वो कह दिया...
achchi sulabh saloni baal kavita.
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar ....
जवाब देंहटाएंnatural pure natural.........thanks..a..lot.....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंNice post.
जवाब देंहटाएंतम हट जाता, जग जगजाता।
जवाब देंहटाएंजन दिनचर्या में लग जाता।।
बहुत खूब...
सरल शब्दों में, आसानी से ग्राह्य और देश प्रेम से ओत प्रोत सुन्दर रचना है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता!!! मन को भाती प्यारी कविता!!!
जवाब देंहटाएंसरलता से बात कह देना ही आपकी खासियत है
जवाब देंहटाएंसही है ....यही तो है अपना भारत
जवाब देंहटाएंसच्चे भारत का बहुत खूबसूरत चित्र खींचा है।
जवाब देंहटाएंतस्वीरें बहुत अच्छी है , कविता भी
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत कविता है आपकी,
जवाब देंहटाएंमन को भाती प्यारी कविता!!!
जवाब देंहटाएंयही तो है अपना खूबसूरत भारत|
जवाब देंहटाएंमनभावन बाल कविता....शुभ कामनाएं डा० साहब
जवाब देंहटाएं