मेरी बालकृति नन्हें सुमन से एक बालकविता "इण्टरनेट" करता है हर बात उजागर। इण्टर-नेट ज्ञान का सागर।। इससे मेल मुफ्त हो जाता। दूर देश में बात कराता।।कहती है प्यारी सी मुनिया। टेबिल पर है सारी दुनिया।। लन्दन हो या हो अमरीका। आबूधाबी या अफ्रीका।। बादल, घूप और छाँव देख लो।। उड़न-तश्तरी यह समीर की। यह थाली है भरी खीर की।। जग भर की जितनी हैं भाषा। सबकी है इसमें परिभाषा।। पल में नैनीताल घूम लो। पर्वत की हर शिखर चूम लो।। चाहे शोख नजारे देखो। सजे-धजे गलियारे देखो।। अन्तर्-जाल बड़े मनवाला। कर देता है यह मतवाला।। छोटा सा कम्प्यूटर लेलो। फिर इससे जी भरकर खेलो।। आओ इण्टर-नेट पढ़ाएँ। मौज मनाएँ, ज्ञान बढ़ाएँ।। |
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10 दिसंबर, 2013
"इण्टरनेट" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बढ़िया है आदरणीय-
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें -
बहुत बढ़िया..
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