मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
"उल्लू"
उल्लू का रंग-रूप निराला। लगता कितना भोला-भाला।।
अन्धकार इसके मन भाता। सूरज इसको नही सुहाता।।
यह लक्ष्मी जी का वाहक है। धन-दौलत का संग्राहक है।।
इसकी पूजा जो है करता। ये उसकी मति को है हरता।।
धन का रोग लगा देता यह। सुख की नींद भगा देता यह।।
सबको इसके बोल अखरते। बड़े-बड़े इससे हैं डरते।।
विद्या का वैरी कहलाता। ये बुद्धू का है जामाता।।
पढ़-लिख कर ज्ञानी बन जाना। कभी न उल्लू तुम कहलाना।।
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beautiful poem..
जवाब देंहटाएंमेरी नयी post मैंने सुना है कि आप के ashram में महात्मा बनते हैं,
मैं mahatma बनना चाहता हूँ,
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बहुत सुंदर उल्लू है !
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