मेरी बालकृति नन्हें सुमन से एक बालगीत
बिना सहारे और सीढ़ी के, झटपट पेड़ों पर चढ़ जाता। गली मुहल्लों में लोगों को, खों-खों करके बहुत डराता।
कोई इसको वानर कहता, कोई हनूमान बतलाता। मानव का पुरखा बन्दर है, यह विज्ञान हमें सिखलाता।
लाठी और डुगडुगी लेकर, इसे मदारी खूब नचाता। यह करतब से हमें हँसाता, माँग-माँग कर पैसा लाता।
जंगल के आजाद जीव को,
मानव देखो बहुत सताता।
देख दुर्दशा इन जीवों की,
तरस हमें इन पर है आता।।
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29-05-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1627 में दिया गया है |
जवाब देंहटाएंआभार
प्यारी कविता
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