बगुला भगत बना है कैसा?
लगता एक तपस्वी जैसा।।
अपनी धुन में अड़ा हुआ है।
एक टाँग पर खड़ा हुआ है।।
धवल दूध सा उजला तन है।
जिसमें बसता काला मन है।।
मीनों के कुल का घाती है।
नेता जी का यह नाती है।।
बैठा यह तालाब किनारे।
छिपी मछलियाँ डर के मारे।।
पंख कभी यह नोच रहा है।
आँख मूँद कर सोच रहा है।।
मछली अगर नजर आ जाये।
मार झपट्टा यह खा जाये।।
इसे देख धोखा मत खाना।
यह ढोंगी है जाना-माना।।
(चित्र गूगल सर्च से साभार) |
nice
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंधवल दूध सा उजला तन है।
जवाब देंहटाएंजिसमें बसता काला मन है।।
बगुला भगत बनने वालों की पोल खोल दी आपने..बढ़िया सुंदर और मजेदार कविता...
बधाई शास्त्री जी!!
मीनों के कुल का घाती है।
जवाब देंहटाएंनेता जी का यह नाती है।।
बढ़िया व्यंग....
बगुले की सारी विशेषताएं बताती हुई अच्छी रचना..
बहुत ही सुन्दर गीत !!
जवाब देंहटाएंमदर्स डे की बधाई . आज ममा लोगों का दिन है, सो कोई शरारत नहीं केवल प्यार और प्यार !!
जवाब देंहटाएं____________________________
पाखी की दुनिया में 'मम्मी मेरी सबसे प्यारी' !
इसे देख धोखा मत खाना।
जवाब देंहटाएंयह ढोंगी है जाना-माना।।
बहुत सुन्दर बाल गीत
बहुत सुन्दर बाल गीत.
जवाब देंहटाएंबढ़िया बाल कविता!
जवाब देंहटाएं--
सबसे प्यारा होता है : अपनी माँ का मुखड़ा!
bahut sundar baalgeet.badhai!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंhttp://nanhen deep.blogspot.com/
http://adeshpankaj.blogspot.com/
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंhttp://nanhen deep.blogspot.com/
http://adeshpankaj.blogspot.com/
सिफ़ बच्चों को ही नहीं बड़ों भी रचना पढ़ कर मजा आया। अति सुन्दर..........रचना|
जवाब देंहटाएंसद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी