"सूरज चाचा-चन्दा मामा" सूरज चाचा , सूरज चाचा जैसे ही तुम आते हो नयी सुबह की नयी किरण को अपने संग में लाते हो | फूलों से उपवन भर जाता भौंरे गुनगुन गाते हैं चिड़ियों का कलरव सुनते ही झट बच्चे उठ जाते हैं | चाचा जब तुम आते हो मामा तब घर को जाते हैं तुम तो काम बहुत देते हो मामा हमें सुलाते हैं | |
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29 मई, 2010
“सूरज-चन्दा:श्रीमती संगीता स्वरूप”
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बहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंwaah waah.........sangeeta ji bahut hi sundar baal kavita.....man ko bha gayi.
जवाब देंहटाएंbahut mazaa aaya, bachche ban gaye
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, कभी कभी भरी भरकम शब्दों और गहराइयों से निकल कर बच्चों के साथ जी लेना कितना अच्छा लगता है. जब हम भी बच्चे बन जाते हैं.
जवाब देंहटाएंwaah waah maja aa gaya ..ekdam bholi bhali si masum rachna.
जवाब देंहटाएं3 दिनों के अवकाश के बाद
जवाब देंहटाएंमैं वापिस आ गया हूँ!
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सभी टिप्पणीदाताओं का आभार व्यक्त करता हूँ।।
आपकी यह पोस्ट चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर मंगलवार १.०६.२०१० के लिए ली गयी है ..
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/
aakhir ki 2 line bahut acchhi lagi
जवाब देंहटाएंbadhayi.
बढ़िया होने के कारण
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर इस पोस्ट की चर्चा
निम्नांकित शीर्षक के अंतर्गत की गई है –
इस दुनिया में सबसे न्यारे!
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टर्र-टर्रकर मेढक गाएँ -
पेड़ लगाकर भूल न जाना!