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29 मई, 2010

“सूरज-चन्दा:श्रीमती संगीता स्वरूप”

"सूरज चाचा-चन्दा मामा"


सूरज चाचा , सूरज चाचा
जैसे  ही  तुम  आते  हो
नयी  सुबह की  नयी किरण को
अपने  संग  में लाते हो  |

फूलों से उपवन  भर जाता
भौंरे  गुनगुन  गाते हैं
चिड़ियों  का कलरव सुनते ही
झट बच्चे  उठ जाते  हैं  |

चाचा जब  तुम आते हो
मामा  तब घर को जाते हैं
तुम तो काम बहुत देते  हो

मामा  हमें सुलाते हैं  |

9 टिप्‍पणियां:

  1. waah waah.........sangeeta ji bahut hi sundar baal kavita.....man ko bha gayi.

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  2. बहुत सुन्दर, कभी कभी भरी भरकम शब्दों और गहराइयों से निकल कर बच्चों के साथ जी लेना कितना अच्छा लगता है. जब हम भी बच्चे बन जाते हैं.

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  3. 3 दिनों के अवकाश के बाद
    मैं वापिस आ गया हूँ!
    --
    सभी टिप्पणीदाताओं का आभार व्यक्त करता हूँ।।

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  4. आपकी यह पोस्ट चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर मंगलवार १.०६.२०१० के लिए ली गयी है ..
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  5. बढ़िया होने के कारण
    चर्चा मंच पर इस पोस्ट की चर्चा
    निम्नांकित शीर्षक के अंतर्गत की गई है –
    इस दुनिया में सबसे न्यारे!
    --
    टर्र-टर्रकर मेढक गाएँ -
    पेड़ लगाकर भूल न जाना!

    जवाब देंहटाएं

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