हरी, लाल और पीली-पीली! बिकती लीची बहुत रसीली!! गुच्छा प्राची के मन भाया! उसने उसको झट कब्जाया!! लीची को पकड़ा, दिखलाया! भइया को उसने ललचाया!! प्रांजल के भी मन में आया! सोचा इसको जाए खाया!! गरमी का मौसम आया है! लीची के गुच्छे लाया है!! दोनों ने गुच्छे लहराए! लीची के गुच्छे मन भाए!! |
चुराने का मन हो रहा है लेकिन आपने मना कर रखा है........
जवाब देंहटाएंलीची देखकर तो मुह में पानी आ गया , लीची पर कविता सुन्दर है
जवाब देंहटाएंSaamyik, bahut sundar
जवाब देंहटाएंकविता और कविता का सचित्र प्रस्तुति..लाज़वाब शास्त्री जी..सुंदर कविता के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंचित्र और कविता ..दोनों ही बेमिसाल....
जवाब देंहटाएंलीची देख सबका मन ललचाया
आज तो सबका मन ललचा दिया………………बहुत सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंलीची के गुच्छे मन भाए!
जवाब देंहटाएंइन्हें देखकर मन ललचाए!!
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बौराए हैं बाज फिरंगी!
जन्म-दिवस पर मिला : मुझे एक अनमोल उपहार!
सुन्दर सुन्दर प्यारी प्यारी मीठी मीठी लीची देखकर तो मुँह में पानी आ गया! अब तो रहा नहीं जा रहा है तुरंत खाने का मन कर रहा है! तस्वीर के साथ साथ बहुत ही प्यारी रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..मुँह में पानी आ गया...
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