मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
एक बालकविता"चले देखने मेला"
हाथी दादा सूँड उठाकर
चले देखने मेला!
बंदर मामा साथ हो लिया
बनकर उनका चेला!
चाट-पकौड़ी ख़ूब उड़ाई
देख चाट का ठेला!
बहुत मज़े से फिर दोनों ने
जमकर खाया केला!
फिर आपस में दोनों बोले,
अच्छा लगा बहुत मेला!
जंगल में सबको बतलाया,
देखा हमने मेला!
|
यह ब्लॉग खोजें
15 अगस्त, 2013
"चले देखने मेला" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
खूब मस्त....
जवाब देंहटाएंबच्चे हो गये सब पढ़कर