मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
एक बालकविता
"मोबाइल"
पापा ने दिलवाया मुझको, मोबाइल इक प्यारा सा। मन-भावन रंगों वाला, यह एक खिलौना न्यारा सा।।
रोज सुबह को मुझे जगाता, मोबाइल कहलाता है। दूर-दूर तक बात कराता, सही समय बतलाता है।।
नम्बर डायल करो किसी का, पता-ठिकाना बतलाओ। मुट्ठी में इसको पकड़ो और, संग कहीं भी ले जाओ।।
इससे नेट चलाओ चाहे, बात करो दुनिया भर में। यह सबके मन को भाता है, लोकलुभावन घर-घर में।।
बटन दबाते ही मोबाइल, काम टार्च का देता है। पलक झपकते ही यह सारा, अंधियारा हर लेता है।।
सेल-फोन इस युग का, इक छोटा सा है कम्प्यूटर। गुणा-भाग करने वाला, बन जाता कैल-कुलेटर।।
|
सच में बचपन में पहले मोबाईल को पाने की ख़ुशी अजीब ही होती है...यह आज की ज़रूरत बनता जा रहा है...मोबाईल की महत्ता को दर्शाती अच्छी कविता...बधाई;-))
जवाब देंहटाएंmaja to aata hai sara chij pal jhapte hajir ....acchi kavita ....
जवाब देंहटाएंये सब का भाग्य विधाता है ,
जवाब देंहटाएंनन्ना सा सेल हमारा है।
ये फ़ो टू भी दिखलाता है ,
गाने भी खूब सुनाता है।