मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
एक बालकविता
"मेरी गइया"
मेरी गइया बहुत निराली।
सीधी-सादी, भोली-भाली।
सुबह हुई गइया रम्भाई,
मेरा दूध निकालो भाई।
हरी घास खाने को लाना,
उसमें भूसा नहीं मिलाना।
इसका बछड़ा बहुत सलोना,
प्यारा-सा वह एक खिलौना।
मैं जब गइया दुहने जाता,
वह "अम्माँ" कहकर चिल्लाता।
सारा दूध नहीं दुह लेना,
मुझको भी कुछ पीने देना।
थोड़ा ही ले जाना भइया,
सीधी-सादी मेरी मइया।
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19 अगस्त, 2013
"मेरी गइया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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waah dil khush ho gaya ....
जवाब देंहटाएंबच्चों के लिए बहुत ही प्यारी रचना । वाह !
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