मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
एक बालकविता
"मेरा बस्ता कितना भारी"
मेरा बस्ता कितना भारी।
बोझ उठाना है लाचारी।।
मेरा तो नन्हा सा मन है।
छोटी बुद्धि दुर्बल तन है।।
पढ़नी पड़ती सारी पुस्तक।
थक जाता है मेरा मस्तक।।
रोज-रोज विद्यालय जाना।
बड़ा कठिन है भार उठाना।।
कम्प्यूटर का युग अब आया।
इसमें सारा ज्ञान समाया।।
मोटी पोथी सभी हटा दो।
बस्ते का अब भार घटा दो।।
एक पुस्तिका पेन चाहिए।
हमको मन में चैन चाहिए।।
कम्प्यूटर जी पाठ पढ़ायें।
हम बच्चों का ज्ञान बढ़ाये।
इतने से चल जाये काम।
छोटा बस्ता हो आराम।।
|
यह ब्लॉग खोजें
11 अगस्त, 2013
"मेरा बस्ता कितना भारी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
वास्तव में बच्चों पर अच्छा खासा बोझ है बस्ता | थोड़ा हल्का होना चाहिये बस्ता |
जवाब देंहटाएंवास्तव में बच्चों की पीड़ा को खूब व्यक्त किया आपने
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंमेरा तो नन्ना सा तन है ,
बस्ता भारी हल्का तन है।
छोटा बस्ता छोटा परिवार (पाठ्य पुस्तकें )
बेहद सुन्दर सशक्त बाल ,कविता में कथा और कथा में बेहद की सुन्दर कविता। ॐ शान्ति।
बहुत सुंदर कविता ......
जवाब देंहटाएंwqakai mein bacchon par jyadtee hotee hai ...bacchon kee vyatha ka sunder chitran
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बाल कविता ......
जवाब देंहटाएं