यह ब्लॉग खोजें

11 अगस्त, 2013

"मेरा बस्ता कितना भारी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
एक बालकविता
"मेरा बस्ता कितना भारी"

मेरा बस्ता कितना भारी।
बोझ उठाना है लाचारी।।

मेरा तो नन्हा सा मन है।
छोटी बुद्धि दुर्बल तन है।।

पढ़नी पड़ती सारी पुस्तक।
थक जाता है मेरा मस्तक।।

रोज-रोज विद्यालय जाना।
बड़ा कठिन है भार उठाना।।

कम्प्यूटर का युग अब आया।
इसमें सारा ज्ञान समाया।।

मोटी पोथी सभी हटा दो।
बस्ते का अब भार घटा दो।।

एक पुस्तिका पेन चाहिए।
हमको मन में चैन चाहिए।।
कम्प्यूटर जी पाठ पढ़ायें।
हम बच्चों का ज्ञान बढ़ाये।

इतने से चल जाये काम।
छोटा बस्ता हो आराम।।

6 टिप्‍पणियां:

  1. वास्तव में बच्चों पर अच्छा खासा बोझ है बस्ता | थोड़ा हल्का होना चाहिये बस्ता |

    जवाब देंहटाएं
  2. वास्तव में बच्चों की पीड़ा को खूब व्यक्त किया आपने

    जवाब देंहटाएं

  3. मेरा तो नन्ना सा तन है ,

    बस्ता भारी हल्का तन है।

    छोटा बस्ता छोटा परिवार (पाठ्य पुस्तकें )

    बेहद सुन्दर सशक्त बाल ,कविता में कथा और कथा में बेहद की सुन्दर कविता। ॐ शान्ति।

    जवाब देंहटाएं
  4. wqakai mein bacchon par jyadtee hotee hai ...bacchon kee vyatha ka sunder chitran

    जवाब देंहटाएं

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।