मेरी बालकृति
"नन्हें सुमन" से
एक बालकविता "स्कूल बस"
बस में जाने में
मुझको,
आनन्द बहुत आता है।
खिड़की के नजदीक
बैठना,
मुझको बहुत सुहाता
है।।
पहले मैं विद्यालय
में,
रिक्शा से आता-जाता
था।
रिक्शे-वाले की हालत
पर,
तरस मुझे आता था।।
लेकिन अब विद्यालय
में,
इक नयी-नवेली बस आयी।
पीले रंग वाली सुन्दर
सी,
गाड़ी बच्चों ने
पायी।।
आगे हैं दो काले टायर,
पीछे लगे चार चक्के।
बड़े जोर से हार्न
बजाती,
हो जाते हम
भौंचक्के।।
पढ़-लिख कर मैं
खोलूँगा,
छोटे बच्चों का
विद्यालय।
अलख जगाऊँगा शिक्षा
की,
पाऊँगा जीवन की लय।। |
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11 सितंबर, 2013
"स्कूल बस" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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Sunder Bal Rachna
जवाब देंहटाएंसुन्दर सौद्देश्य बोध वर्धक।
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