मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
गुन-गुन करता भँवरा आया।
कलियों फूलों पर मंडराया।। यह गुंजन करता उपवन में। गीत सुनाता है गुंजन में।। कितना काला इसका तन है। किन्तु बड़ा ही उजला मन है। जामुन जैसी शोभा न्यारी। खुशबू इसको लगती प्यारी।। यह फूलों का रस पीता है। मीठा रस पीकर जीता है।। |
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04 सितंबर, 2013
"भँवरा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बहुत बढ़िया कविता
जवाब देंहटाएंकितना काला इसका तन है।
जवाब देंहटाएंकिन्तु बड़ा ही उजला मन है।
सुंदर मनभावन ..
वाह .शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामना
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