मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
एक बालकविता
"अब पढ़ना मजबूरी है"
खेल-कूद में रहे रात-दिन,
अब पढ़ना मजबूरी है।
सुस्ती - मस्ती छोड़,
परीक्षा देना बड़ा जरूरी है।।
मात-पिता,विज्ञान,गणित है,
ध्यान इन्हीं का करना है।
हिन्दी की बिन्दी को,
माता के माथे पर धरना है।।
देव-तुल्य जो अन्य विषय है,
उनके भी सब काम करेगें।
कर लेंगें, उत्तीर्ण परीक्षा,
अपना ऊँचा नाम करेंगे।।
श्रम से साध्य सभी कुछ होता,
दादी हमें सिखाती है।
रवि की पहली किरण,
हमेशा नया सवेरा लाती है।।
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20 सितंबर, 2013
"अब पढ़ना मजबूरी है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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SUNDAR BAL KAVITA .BADHAI
जवाब देंहटाएंसामायिक रचना.. बदलाव की जरुरत है..
जवाब देंहटाएंस्थितियां बदलेगी तभी सब संभव है...
sundar samyik rachna ..baalman ka sundar chitran :) sada naman r
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