मेरी बालकृति नन्हें सुमन से![]() एक बाल कविता "बिल्ली मौसी" ![]() बिल्ली मौसी बिल्ली मौसी, क्यों इतना गुस्सा खाती हो। कान खड़ेकर बिना वजह ही, रूप भयानक दिखलाती हो।। ![]() मैं गणेश जी का वाहन हूँ, मैं दुनिया में भाग्यवान हूँ।। चाल समझता हूँ सब तेरी, गुणी, चतुर और ज्ञानवान हूँ। ![]() छल और कपट भरा है मन में, धोखा क्यों जग को देती हो? मैं नही झाँसे में आऊँगा, आँख मूँद कर क्यों बैठी हो? |
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30 अक्टूबर, 2013
"बिल्ली मौसी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
26 अक्टूबर, 2013
"काली गइया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
22 अक्टूबर, 2013
"पतंग का खेल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति नन्हें सुमन से![]() एक बाल कविता "पतंग का खेल" ![]()
लाल और काले रंग वाली,
मेरी पतंग बड़ी मतवाली।
मैं जब विद्यालय से आता,
खाना खा झट छत पर जाता।
![]()
पतंग उड़ाना मुझको भाता,
बड़े चाव से पेंच लड़ाता।
पापा-मम्मी मुझे रोकते,
बात-बात पर मुझे टोकते।
लेकिन मैं था नहीं मानता,
नभ में अपनी पतंग तानता।
वही हुआ मन में जो डर था,
अब मैं काँप रहा थर-थर था।
मैं था यारों ऐसा हीरो,
सब विषयों लाया जीरो।
अब ये मैंने सोच लिया है,
पतंग उड़ाना छोड़ दिया है।
कभी नहीं अब हूँगा फेल,
नहीं करूँगा ज्यादा खेल।
आसमान में उड़ने वाली,
जो करती थी सैर निराली।
नहीं पतंग को प्यार करूँगा,
पढ़ने में अब ध्यान धरूँगा।
मित्रों! मेरी बात मान लो,
अपने मन में आज ठान लो।
पुस्तक लेकर ज्ञान बढ़ाओ।
कभी-कभी ही पतंग उड़ाओ।।
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18 अक्टूबर, 2013
"एक मदारी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति नन्हें सुमन से![]() एक बाल कविता "एक मदारी" ![]() देखो एक मदारी आया। अपने संग लाठी भी लाया।। डम-डम डमरू बजा रहा है। भालू, बन्दर नचा रहा है।। लम्बे काले बालों वाला। भालू का अन्दाज निराला।। खेल अनोखे दिखलाता है। बच्चों के मन को भाता है।। ![]() वानर है कितना शैतान। पकड़ रहा भालू के कान।। यह अपनी धुन में ऐँठा है। भालू के ऊपर बैठा है।। लिए कटोरा पेट दिखाता। माँग-माँग कर पैसे लाता।। |
14 अक्टूबर, 2013
"गांधी टोपी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
11 अक्टूबर, 2013
"बालक की इच्छा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी बालकृति
नन्हें सुमन से
![]()
एक बालकविता
"बालक की इच्छा"
मैं अपनी मम्मी-पापा के,
नयनों का हूँ नन्हा-तारा। मुझको लाकर देते हैं वो, रंग-बिरंगा सा गुब्बारा।।
मुझे कार में बैठाकर,
वो रोज घुमाने जाते हैं। पापा जी मेरी खातिर, कुछ नये खिलौने लाते हैं।। मैं जब चलता ठुमक-ठुमक, वो फूले नही समाते हैं। जग के स्वप्न सलोने, उनकी आँखों में छा जाते हैं।। ममता की मूरत मम्मी-जी, पापा-जी प्यारे-प्यारे। मेरे दादा-दादी जी भी, हैं सारे जग से न्यारे।। सपनों में सबके ही, सुख-संसार समाया रहता है। हँसने-मुस्काने वाला, परिवार समाया रहता है।। मुझको पाकर सबने पाली हैं, नूतन अभिलाषाएँ। क्या मैं पूरा कर कर पाऊँगा, उनकी सारी आशाएँ।। मुझको दो वरदान प्रभू! मैं सबका ऊँचा नाम करूँ। मानवता के लिए जगत में, अच्छे-अच्छे काम करूँ।। |
07 अक्टूबर, 2013
"आयी रेल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
03 अक्टूबर, 2013
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