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30 अक्तूबर, 2013

"बिल्ली मौसी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
एक बाल कविता
"बिल्ली मौसी"

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बिल्ली मौसी बिल्ली मौसी, 
क्यों इतना गुस्सा खाती हो। 
कान खड़ेकर बिना वजह ही,  
रूप भयानक दिखलाती हो।। 

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मैं गणेश जी का वाहन हूँ, 
मैं दुनिया में भाग्यवान हूँ।।  
चाल समझता हूँ सब तेरी, 
गुणी, चतुर और ज्ञानवान हूँ। 

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छल और कपट भरा है मन में, 
धोखा क्यों जग को देती हो? 
मैं नही झाँसे में आऊँगा, 
आँख मूँद कर क्यों बैठी हो?

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31-10-2013 के चर्चा मंच पर है
    कृपया पधारें
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. छल और कपट भरा है मन में,
    धोखा क्यों जग को देती हो?
    मैं नही झाँसे में आऊँगा,
    आँख मूँद कर क्यों बैठी हो?

    वाह क्या बात है चूहा भाग बिल्ली आई

    जवाब देंहटाएं
  3. क्या बात है जी रविकर आखिर रविकर है ,

    चर्चा चमकी ऐसी जैसे दिनकर है।

    आभार हमारा सेतु सजाने को। आभार मयंक कोने का।

    जवाब देंहटाएं

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