मधुमक्खी
मधुमक्खी है नाम तुम्हारा।
शहद बनाती कितना सारा।।
इसको छत्ते में रखती हो।
लेकिन कभी नही चखती हो।।
कंजूसी इतनी करती हो।
रोज तिजोरी को भरती हो।।
दान-पुण्य का काम नही है।
दया-धर्म का नाम नही है।।
इक दिन डाका पड़ जायेगा।
शहद-मोम सब उड़ जायेगा।।
मिट जायेगा यह घर-बार।
लुट जायेगा यह संसार।।
जो मिल-बाँट हमेशा खाता।
कभी नही वो है पछताता।। |
Badhiya baal kavita,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर... मैंने तो जोड़-तोड़ कर चार लाइनें लिखी थीं लेकिन आपने बहुत बढ़िया कविता की रचना की..
जवाब देंहटाएंअंत दुखद था जो थोड़ा सा निराश कर रहा है , जो मधुमखियाँ हमें इतना सारा शहद देती है हम उन्हें उजाड़ क्यों देते है
जवाब देंहटाएंwah kavita k pravaah ke sath sath jo sandesh chhipa hai kavita me laajawab hai.
जवाब देंहटाएंbehad khoobsoorat sandesh deti manmohak kavita.
जवाब देंहटाएं"इक दिन डाका पड़ जायेगा।
जवाब देंहटाएंशहद-मोम सब उड़ जायेगा।।"
बड़ी सादगी से सार्थक संदेश
दिया है ...... बधाई।
सद्भावी- डॉ० डंडा लखनवी
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बहुत बढ़िया बाल-गीत लिखाआपने..बधाई.
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