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08 जून, 2010

“मधुमक्खी है नाम तुम्हारा!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

मधुमक्खी
honey-bee
मधुमक्खी है नाम तुम्हारा।   
शहद बनाती कितना सारा।। 


इसको छत्ते में रखती हो।  
लेकिन कभी नही चखती हो।। IMG_1108 
कंजूसी इतनी करती हो।  
रोज तिजोरी को भरती हो।। 


दान-पुण्य का काम नही है।  
दया-धर्म का नाम नही है।। 


इक दिन डाका पड़ जायेगा।  
शहद-मोम सब उड़ जायेगा।। 


मिट जायेगा यह घर-बार।  
लुट जायेगा यह संसार।। 


जो मिल-बाँट हमेशा खाता।  
कभी नही वो है पछताता।।

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर... मैंने तो जोड़-तोड़ कर चार लाइनें लिखी थीं लेकिन आपने बहुत बढ़िया कविता की रचना की..

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  2. अंत दुखद था जो थोड़ा सा निराश कर रहा है , जो मधुमखियाँ हमें इतना सारा शहद देती है हम उन्हें उजाड़ क्यों देते है

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  3. "इक दिन डाका पड़ जायेगा।
    शहद-मोम सब उड़ जायेगा।।"
    बड़ी सादगी से सार्थक संदेश
    दिया है ...... बधाई।
    सद्भावी- डॉ० डंडा लखनवी
    ////////////////////

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  4. बहुत बढ़िया बाल-गीत लिखाआपने..बधाई.

    जवाब देंहटाएं

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